ऋता शेखर 'मधु'
1
कोयलिया
जब बोली
हिय में
हूक उठी
उर ने परतें खोलीं।
2
उसकी
शीतल बानी
पीर चुरा
भागी
सूखा दृग
से पानी।
3
पंछी गीत
सुनाएँ
चार पहर दिन
के
साज़
बजाते जाएँ ।
4
टिमटिम चमके तारे
रात सुहानी है
किलके बच्चे सारे ।
5
प्राची की अठखेली
नभ में रंग भरे
कूँची ये अलबेली।
6
सूरज
पाँव पसारे
जाग गई
धरती
खग बोले
भिनसारे।
7
जीवन
सफ़र सुहाना
गम या
खुशियाँ हों
गाता जाय
तराना।
8
जागो रे सब जागो
नव
निर्माण करो
आलस को
अब त्यागो।
9 टिप्पणियां:
विविध रंग लिए सुन्दर माहिया ..
उसकी शीतल बानी
पीर चुरा भागी
सूखा दृग से पानी।.....सचमुच बहुत सामर्थ्य है मधुर वाणी में ....बधाई आपको !!
प्राची की अठखेली
नभ में रंग भरे
कूँची ये अलबेली।
बहुत सुंदर महिया ऋता जी .....बहुत भावपूर्ण ...!!
सूरज पाँव पसारे
जाग गई धरती
खग बोले भिनसारे।
bahut hi khoob likha hai badhai
rachana
ऋता जी सभी माहिया बहुत सुन्दर......बधाई !
शुक्रिया ज्योति कलश जी !१
प्रोत्साहन के लिए बहुत आभार अनुपमा जी !!
मेरे माहिया को यहाँ पर स्थान देने के लिए बहुत आभार !!
बढ़िया माहिया
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बहुत सुन्दर माहिया है...ये तो बहुत अच्छा लगा...|
प्राची की अठखेली
नभ में रंग भरे
कूँची ये अलबेली।
बधाई...|
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