डॉoजेन्नी शबनम
जीवन- पथ
उबड़-खाबड़-से
टेढ़े-मेढ़े-से
गिरते-पड़ते भी
होता चलना,
पथ टीले सही
पथरीले भी
पाँव ज़ख़्मी हो जाएँ
लाखों बाधाएँ
अकेले हों मगर
होता चलना,
नहीं कोई अपना
न कोई साथी
फैला घना अँधेरा
डर-डर के
कदम हैं बढ़ते
गिर जो पड़े
खुद ही उठकर
होता चलना,
खुद पोंछना आँसू
जग की रीत
समझ में तो आती;
पर रुलाती
दर्द होता सहना
चलना ही पड़ता !
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8 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर । प्रेरणादायी चोका।बधाई जेन्नी जी।
बहुत बढ़िया चोका ...आपको हार्दिक बधाई जेन्नी जी !
बहुत बढ़िया चोका ...आपको हार्दिक बधाई जेन्नी जी !
जीवन के कटु यथार्थ का चित्रण तथा मन में आशा जगाता सुन्दर चोका।बधाई जेन्नी शबनम जी।
मार्मिक एवं कठोर सत्य! सुंदर अभिव्यक्ति के लिए बहुत बधाई जेन्नी जी!
~सादर
अनिता ललित
यही जीवन की सच्चाई है, दर्द सहते हुए भी चलते ही जाना है |
मेरी हार्दिक बधाई...|
उत्साहवर्धन के लिए आप सभी का हृदयतल से धन्यवाद.
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