1-भीकम सिंह
सागर - 1
तटों पे काई
लहरों के पैरों में
फिसलन से
जैसे मोच -सी आई
दिन तो कटा
लँगड़ा- लँगड़ाके
किन्तु रात में
जैसे उतरा चाँद
चाँदनी बिछी
तो आँखें ऐसी मिंची
की मदहोशी छाई ।
-0-
सागर- 2
भूली- बिसरी
तटों की यादों पर
पानी-सा फेरे
ये लहरों के फेरे
तिलिस्मी घेरे
गिराते हैं घरौंदे
सीपियाँ- भरे
खिसकता है तट
खुद- ब- खुद
कोई त्रस्त- सी नदी
गिरती झट - पट ।
-0-
सागर - 3
उतर गया
सिन्धु की लहरों पे
प्यासा बादल
तट से निहारता
सीपी -घोंघों का
बचा -खुचा- सा दल
रेत के पाँव
सिन्धु के इलाकों में
निकले जब
घोंघे हुए शिकार
बनी त्यों दल - दल ।
-0-
सागर - 4
सिन्धु के आगे
खड़ा हुआ है एक
लँगड़ा मेघ
है बहुत उदास
कैसे बुझाये
तप्त धरा की प्यास
छोड़ गई हैं
मानसूनी हवाएँ
गाहे-बगाहे
उच्च दाब बनें तो ,
तब लेकर जाए ।
-0-
2-कपिल
कुमार
1
उठा
करके
खाली
ढोल-ढपाल
मेघ
फिरते
बस
गाते-बजाते
तरस
खाओ
नदियों
की हालत
कूप
भी प्यासे
करके
चले जाना
इनको
खुश
एक-आधी
बारिश
भादों
में जाते-जाते।
2
तुम
भी मेघ
हो
गए घुमक्कड़
मन
के जैसे
घूमते
रहते हो
देश-विदेश
कहाँ
से कमाते हो
इतने
पैसे
टिकट
कटवाते
या
फ़्री हवाई-यात्रा।
-0-
5 टिप्पणियां:
सागर और मेघों को लेकर लिखे भीकम सिंह जी एवं कपिल कुमार जी के ख़ूबसूरत चोके। आप दोनों को हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
आदरणीय भीकम सिंह जी व कपिल कुमार जी के बहुत सुन्दर चोका।
हार्दिक बधाई।
सादर
वाह वाह! दोनों रचनाकारों ने खूब समां बाँधा! हार्दिक धन्यवाद आपका।
सुन्दर और बेहतरीन चोका के लिए आप दोनों को बहुत बधाई
आ. भीकम सिंह जी और कपिल कुमार जी को सुन्दर चोका सृजन के लिये दिली बधाई।
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