रश्मि विभा त्रिपाठी
1
जब- जब भी
प्राणों पर है बनी
जिलाए फिर
मीत! मुझे देकर
नेह की संजीवनी!!
2
तुम्हीं ने दिए!
मुझे नए आयाम
अपनी सारी
सुख की विरासत
लिखके मेरे नाम!!
3
उस पार से
तुम जो पुकारते
मैं मुग्धा सुनूँ
बजते सितार- से
वे बोल मल्हार- से!!
4
ये कैसी बस्ती?
मतलबपरस्ती
कौड़ी के भाव
खरीदें- बेचें लोग
प्रीति कितनी सस्ती!
5
बुढ़ापे तक
तुम न सीख पाए
प्रेम के बोल
तुमसे बड़े अच्छे
मेरे दो छोटे बच्चे!!
-0-
11 टिप्पणियां:
वाह ••वाह वाले ताँका, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
वाह! अति सुंदर तांका...हार्दिक शुभकामनाएँ।
वाह,बेहतरीन ताँका।हार्दिक बधाई
मन मुग्ध करती लेखनी आपकी रश्मि जी 🌹🙏
वाह!बहुत सुन्दर सृजन रश्मि जी।
सभी ताँका बहुत सुंदर है।
बुढ़ापे तक
तुम न सीख पाए
प्रेम के बोल
तुमसे बड़े अच्छे
मेरे दो छोटे बच्चे!!
लाजवाब ताँका सृजन । पढ़कर आनंद आ गया ।हार्दिक बधाई ।
ताँका प्रकाशन के लिए आदरणीय सम्पादक द्वय का हार्दिक आभार।
आप सभी आत्मीय जन की टिप्पणी मुझे आत्मबल देती है।
हृदय से आभार।
सादर
Sundar srujan . Badhaai.
सुन्दर सृजन...हार्दिक बधाई।
प्यारे तांका के लिए बहुत बधाई
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