जाने कब बरसेगी
तन मन प्यासा सा
कब आ के सरसेगी |
लो चुनरी भीज गई
कारी बदरी पर
यह
धरती रीझ गई |
झंकार
बजाती है
सरगम
बूंदों की
सुर
ताल सजाती है |
कोरों
में ठहरी सी
बरसी
नयनों से
मन
पीड़ा गहरी सी |
सावन को आने दो
रस की बूंदों को
जी भर बरसाने दो |
कैसी
भरमाई थी
बदरा
आन खड़े
द्वारे
ना आई थी |
सावन
मनमाना सा
बदली
का अँगना
जाना
पहचाना सा |
बिन
सावन छलक गई
बदरी अल्हड़ सी
क्यों
रस्ता भटक गई |
रुत
छैल छबीली सी
झूमी
खेतों में
यह
नार हठीली सी |
नदिया
सी बहती है
बदरी
नीर भरी
नीरव
कुछ कहती है |
धुन
मीठी सुन ली थी
बहती बूंदों ने
मोती
की ये लड़ियाँ
बाँध
के रखेंगे
सावन
की ये घड़ियाँ |
शशि
पाधा
3 टिप्पणियां:
Shashi ji
Bahut hi abhibhoot karte mahiye likhe hain. vaise bhi aapke lekhni se kavya saundary chalkata hai...Devi
shashi ji bahut hi sundar mahiya hai sabhi bahut acche lage
कोरों में ठहरी सी
बरसी नयनों से
मन पीड़ा गहरी सी |
सावन को आने दो
रस की बूंदों को
जी भर बरसाने दो |......... sabhi mahiya manbhavan hardik badhai aapko
वर्षा की प्रीत को अभिव्यक्त करते सुन्दर माहिया ....बधाई दीदी
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
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