मंगलवार, 19 सितंबर 2023

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 गाँव

भीकम सिंह 



1

स्वेद का स्वाद 

होठों पे टिका रहे 

इस तरह 

जिंदगी ! तेरी चाल

जैसी भी रहे 

बस चलती रहे 

उसी तरह

जोतबही का बक्सा 

बिके ना कभी 

ना हो कोई ज़िरह 

खुली रहें गिरह ।

2

गाँव को अब

लकवा मार गया 

उसका वक्त 

तेजी से भाग गया 

भारी लाठियाँ 

लकड़ियों के भाले 

गिरके मरे 

बन्दूकों में बारूद 

अब आ गया, 

नारे और मशाल 

पथराव खा गया 

3

जल - औ - जीव 

ज्यों मरने लगे हैं 

गाँव दिल से 

उतरने लगे हैं 

रचा किसने 

दोहन का जंजाल 

कैसे डर से 

गुजरने लगे हैं 

धारे भी अब 

किसानों के रिश्तों से 

मुकरने लगे हैं 

4

नए रूप में 

समतल हो चुका

गाँव का खेत

फिर हँसने पर 

लाचार हुआ 

घनी फसलें- भरे

खाद से डरे 

खुद पर ही हँसा

फिर ना बचा

उर्वर बचाने को 

हँसने- हँसाने को 

-0-

9 टिप्‍पणियां:

surbhidagar001@gmail.com ने कहा…

बहुत ही सुन्दर लिखा आपने , हार्दिक बधाई
सादर
सुरभि डागर

बेनामी ने कहा…

बहुत ख़ूब लिखा है भीकम जी हार्दिक बधाई। सविता अग्रवाल”सवि”

बेनामी ने कहा…

आज के गाँव की स्थिति का यथार्थ चित्रण करते हुए बहुत ही सुंदर भावपूर्ण चोका। हार्दिक बधाई भीकम सिंह जी। सुदर्शन रत्नाकर

अनीता सैनी ने कहा…

बहुत सुंदर सृजन।

बेनामी ने कहा…

"गाँव " विषय पर भीकम सिंह जी का सृजन लाजवाब होता है । हार्दिक बधाई आपके बेजोड़ सृजन के लिए ।
विभा रश्मि

dr.surangma yadav ने कहा…

सदा की तरह बेहद सुन्दर। बधाई सर।

भीकम सिंह ने कहा…

मेरे चोका प्रकाशित करने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद और मनभावन टिप्पणी करने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार ।

Krishna ने कहा…

लाजवाब सृजन के लिए हार्दिक बधाई भीकम सिंह जी।

बेनामी ने कहा…

वर्तमान गाँवों की स्थिति का यथार्थ चित्रण करते बहुत सुंदर चोका। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर