भीकम सिंह
सामयिक
- 1
हाथों में थामे
फावड़ा-औ-कुदाल
ये रोजीदारी
कर रही बेहाल
इसके लिए
कौन है जिम्मेदार
पसर जाता
हृदय में नित्य ही
दुःख अपार
पलट के देखता
ये छोटा रोजीदार ।
सामयिक
- 2
होंठों पर है
बनावटी मुस्कान
गालियाँ भरी
नेताओं की जबान
खुद-ब-खुद
लग जाती है आग
जले मकान
बढ़ी हुई दुकान
कुछ यादें है
थक- हारके आती
थकाके हार जाती ।
सामयिक - 3
खेतों पे कब्ज़ा
नगरों का हो गया
चलता रहा
किसानों का धरना
प्रतिकार के
शब्दों की होती रही
ज्यों आवाजाही
खंगाल रही उन्हें
अब पुलिस
कई महीनों बाद
हाथ पे धरे हाथ ।
-0-
10 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर चोका।
हार्दिक बधाई आदरणीय भीकम सिंह जी को
बहुत सुंदर ,मुझे चोका का शास्त्रीय ज्ञान तो नहीं है,परंतु भाव और शब्दावली बहुत शानदार है,मन प्रसन्न हो गया पढ़कर।आ०भीकम सिंह जी को हार्दिक बधाई💐
बहुत सुंदर चोका...हार्दिक बधाई।
बहुत सुंदर चोका। बधाई
सुन्दर चोका भीकम सिंह जी बधाई.
रचना
भीकम जी आपके लेखन को नमन। बहुत सुंदर चोका की रचना की है। बधाई। सविता अग्रवाल
“सवि”
मेरे चोका प्रकाशित करने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद और टिप्पणी करने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार ।
बहुत बढ़िया चोका!
~सादर
अनिता ललित
सभी चोका अर्थपूर्ण। बधाई भीकम सिंह जी।
सुन्दर चोका के लिए बहुत बधाई
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