बुधवार, 27 सितंबर 2023

1138-काँच के ख़्वाब

 -डॉ. जेन्नी शबनम 

  


काँच के ख़्वाब 

फेरे जो करवट

चकनाचूर 

हुए सब-के-सब,

काँच के ख़्वाब 

दूसरा करवट

लगे पलने

फेरे जो करवट

चकनाचूर 

फिर सब-के-सब,

डर लगता

कहीं नींद जो आई

काँच के ख़्वाब 

पनपने  लगे,

ख़्वाब देखना

हर पल टूटना

अनवरत

मानो टूटता तारा

आसमाँ रोता

मन यूँ ही है रोता,

ख़्वाब देखता

करता नहीं नागा

मन बेचारा

ज्यों सूरज उगता,

हे मन मेरा!

समझ तू ये खेला

काँच का ख़्वाब 

यही नसीब तेरा

 देख ख़्वाब 

जिसे होना  पूरा,

चकोर ताके 

चन्दा है मुस्कुराए

मुँह चिढ़ाए

पहुँच नहीं पाए

जान गँवाए

यूँ ही काँच के ख़्वाब 

मन में पले

उम्मीद है जगाए,

पूरे  होते

फेरे जो करवट 

चकनाचूर 

होते सब-के-सब

मेरे काँच के ख़्वाब। 

-0-

 

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मंगलवार, 19 सितंबर 2023

1137

 गाँव

भीकम सिंह 



1

स्वेद का स्वाद 

होठों पे टिका रहे 

इस तरह 

जिंदगी ! तेरी चाल

जैसी भी रहे 

बस चलती रहे 

उसी तरह

जोतबही का बक्सा 

बिके ना कभी 

ना हो कोई ज़िरह 

खुली रहें गिरह ।

2

गाँव को अब

लकवा मार गया 

उसका वक्त 

तेजी से भाग गया 

भारी लाठियाँ 

लकड़ियों के भाले 

गिरके मरे 

बन्दूकों में बारूद 

अब आ गया, 

नारे और मशाल 

पथराव खा गया 

3

जल - औ - जीव 

ज्यों मरने लगे हैं 

गाँव दिल से 

उतरने लगे हैं 

रचा किसने 

दोहन का जंजाल 

कैसे डर से 

गुजरने लगे हैं 

धारे भी अब 

किसानों के रिश्तों से 

मुकरने लगे हैं 

4

नए रूप में 

समतल हो चुका

गाँव का खेत

फिर हँसने पर 

लाचार हुआ 

घनी फसलें- भरे

खाद से डरे 

खुद पर ही हँसा

फिर ना बचा

उर्वर बचाने को 

हँसने- हँसाने को 

-0-

रविवार, 17 सितंबर 2023

1136

 

1-सविता अग्रवाल सवि कैनेडा 

1.

मीरा की भक्ति

राधा का घनश्याम

जगत रखवाला

मुरारी ग्वाला

प्रेम- रस- गागर

आनंद का सागर ।

2 .

देवकी पुत्र

यशोदा का ललना

झूल रहा पलना

लीला रचाता

कुंजों  में विचरता

मटकियाँ फोड़ता ।

3.

मुरलीधर

वंशी धुन बजा

गोपियों को रिझाए

रक्षक बन

नोंक पे अँगुली की

गोवर्धन उठा

4 .

यशोदा लाल

कदम्ब वृक्ष बैठ

सखाओं को बुला

गेंद उछाले

यमुना- जल डाले

कालिया नाग मारे ।

5.

कृष्ण की छवि

निरखता ह्रदय

बेसुध करे मन

भक्ति में डोले

श्याम श्याम ही बोले

कर्ण अमृत घोले ।

6.

कुञ्ज बिहारी

अधर वंशीधर

मोहन गिरधारी

ब्रज का ग्वाला

बना सखा सुदामा

कंठ वैजन्ती माला ।   

-0-

2-  बेटी (जनक छन्द) /विभा रश्मि 

1

बेटी अँगना - खेलती ।

माँ से जीना सीखके

दुख - सुख हँसके झेलती ।

2

भोली - भाली लाड़ली ।

नैहर में नाज़ों पली

निकली मिश्री की डली ।

3

नव दुल्हन की पालकी ।

दिल में खिलते फूल हैं

तड़पी चिड़िया डाल की ।

4

तनया सोने की कनी

नखरों - नाज़ों से  पली 

मुक्ता , हीरे से बनी

5

लाडो खेले मगन हो ।

आकर खुशियाँ चूम लें 

छू लेगी वो गगन को ।

-0-


शुक्रवार, 8 सितंबर 2023

1135

 हाइबन - तालाब   / विभा रश्मि 


छोटे - पठारी भाग से बहकर ,बारिश का जल  शहर की  निचली जगहों पर एकत्र होना शुरु हो गया । जिसने एक छोटा तालाब निर्मित कर दिया था । उस नव - तलैया में शनैः -शनैः परिन्दों ने डेरा डालना शुरू कर दिया । तालाब के  सौंदर्य में चार चाँद लग गए थे ।

तालाब में नीला आसमान  झाँकता, वो दिन-रात अपने रंग बदलता, जैसे राजा एक दिन में अनेक रेशमी वस्त्र बदलता। इसका अर्थ प्रकृति का राजसी होना हरगिज़ नहीं । आकाश दानवीर था , वो कर्मवीरों से स्नेह रखता था ...।

जब वो रंग बदलता तो आसपास पठारी भाग में ऊँचाई पर रहने वाले वाशिंदे, प्रकृति की रमणीय दृश्यावली का आनंद लूटते। बारिश के मौसम में खूब बरखा होती । यहाँ का आसमान -काले , स्लेटी मेघों से आच्छादित होकर अपने कई लुभावने  रंग दिखाता और आनंद लुटाता ।

किनारे पर बने ईंटिया रंग के, लाल छतवाले दुमंज़िला पुराने मकानों की प्रतिच्छाया,  बरसाती तालाब की खूबसूरती बढ़ा देती ।

ये जल पर बने अक्स, अक्सर मछलियों की चपलता से हिल जाते और काँप उठते, चंचला मीन सब मिटा डालतीं ।

मैं तीन दिन से इस मंजर को निरख रही हूँ । बीमारी की वजह से कहीं आ-जा नहीं सकती ।

होटल की विशाल काँच की खिड़की से प्यारे चहकते परिंदों और हहराते समंदर से बतियाने के लिए ,मैं पुनः इस खूबसूरत शहर आऊँगी । "प्रॉमिस...जेन्टलमेंस प्रॉमिस ...।" चलते - चलते षोडशी ने माँ का पश्मीना शॉल कसकर लपेट लिया और अपनी नरम हथेली, अपने ओठों पर स्पर्श कर कई चुंबन आसमान , तालाब और परिंदों की ओर उछाल  दिए...।

मंजर आँका

दिल पे वादियों का ,

प्यार लुटाया । 


मंगलवार, 5 सितंबर 2023

1134

 परिचय

प्रीति अग्रवाल



कौन हो तुम?
अपना परिचय
देना चाहोगी
जब उसने पूछा
पल भर को
अवाक, मौन रही
जटिल प्रश्न
अटपटा उत्तर
साधारण हूँ
सादगी पसन्द हूँ
थोड़े में खुश
मिल-बाँट रहती
कैसे हों दिन
नदिया सी बहती
अपने मानूँ
सबके सुख-दुःख
न प्रतिस्पर्धा,
बैर मन में रखा
प्रभु की कृपा
आशीष बहुत हैं
परिचय ये
संक्षिप्त, बहुत है
अनोखी तुम
वो हँसकर बोला-
ऐसी रहना
असाधारण दौर
सभी सयाने
यूँ साधारण होना
बड़ी खास बात है!!
-0-

गुरुवार, 31 अगस्त 2023

1133

  भीकम सिंह 

गाँव  - 96

 

गाँवों में अभी 

तपती हवाएँ हैं 

लोगों से घिरे 

जलते अलाव भी

खेत-सूखे हैं

औ- जल भराव भी

मिट्टी सोंधी है

थोड़ी-सी खराब भी

बीड़ी फूँकते 

आसमान ताकते 

हैं अभी स्वभाव भी 

 

गाँव  - 97

 

छोटा-सा खेत 

हिस्से-हिस्से हो गया 

बँटवारा ज्यों 

आँगन में दीवार 

ऊँची बो गया 

हारा हुआ मुखिया 

रिश्तों में कैद 

होकर रह गया 

बड़ा मलाल 

बूढ़ी माता को हुआ 

कैसे बाँटे वो दुआ 

 

गाँव  - 98

 

घरों से दूर

जब पहुँचा गाँव 

धान के पास

खुदी- सी मिली नींव 

मेड़ के पास

कहीं झड़े- से दाने

धोती-गमछा 

कहीं जूती - चप्पल 

कहीं विश्वास 

टूटा मिला रेत  में 

सब उसी खेत  में  

 

गाँव  - 99

 

बढ रहे हैं 

जमीन के भीतर

नाइट्रोजन 

सल्फर-औ-कार्बन 

खेत के खेत 

जमुहाई ले रहे 

गाँव चुप थे 

बहुत दिनों बाद 

ब्योरा ले रहे 

सारे जमा खर्च का 

सरकारी सर्च का 

 

गाँव  - 100

 

गाँवों को मिले 

तिकड़मी दबंग 

किसान दंग

प्यासे खेत पी रहे 

खाद की भंग 

सभी बंजर जैसे 

खड़े हैं दंग

कृषि हो चुकी बूढ़ी 

बची ना यंग 

उड़े शस्यों के रंग 

खलिहान के संग 

-0-

चाँद

भीकम सिंह 

1

मेघों के सारे 

दरवाजे खोलके

निकले तारे 

चकोरों ने भी खोले 

झोपड़ियों के द्वारे   

2

 चंदा का नाम 

जुड़ा ज्यों चकोर से

चाँदनी चढ़ी

बड़े जोर- शोर से 

धरा देखे गौर से ।

3

कोह की ओट

नदी में डूबा चाँद 

सोचे चकोर

कैसे पैगाम मेरा 

पहुँचे उस ओर।

-0-