कृष्णा वर्मा
1
मटकी पर
मटकी धरकर
मटकी जाए
लचके करधनी
जियरा धड़काए।
2
मानवी हो या
प्रतिमा हो मान की
कौन हो प्रिय
मुक़्त जलधार हो
या हो साक्षात् प्यार।
3
विविध रंग
उगे विधि विधान
लता कुसुम
कहीं छलका रूप
कहीं सिहरे अंग।
4
चढ़ीं मुँडेर
पीत पुष्प लताएँ
अमवा बौरे
कुहके कोयलिया
मनवा तड़पाए।
5
पात हँसे औ
कली-कली किलकी
गा-गाके गीत
बौरी पौन दीवानी
फूला बाग वसंत।
6
साधु औ संत
मर रही सादगी
आया वसंत
पाती-पाती प्रेम की
भरे जिया तरंग।
7
गुपचुप से
जुगनू बतियाते
तमिस्रा-गाथा
चंदा बिना चकोर
कैसा हुआ विकल।
8
देखा न गया
लगी है बतियाने
ठूँठी डालों से
आके नई कोंपलें
बाँटे हैं नव प्राण।
9
रंग वासंती
छिटक रहा कौन
पुष्प-कली में
सरसा है यौवन
कौन तोड़ता मौन।
10
कौन पाँखुरी
करता सुवासित
हुए दीवाने
भ्रमर रहे झूम
पीकर मकरंद।
11
अवतरण
सिंदूरी सूरज का
मन सपन
बुनता आशाओं के
स्पन्दन से हर्षित।
12
जगता रवि
भोर में ऊषा संग
रहती खड़ी
लेके रक्तिम विभा
साँझ साँवली द्वार।
13
बाँटे सूरज
कुंदनमयी आभा
रास रचाए
थिरक-थिरक के
धरती संग रश्मि।
14
गोधूलि- कण
अंक में समेटके
विचरे शशि
नभ में हौले-हौले
शांत चाँदनी
संग।
15
सौम्य चाँदनी
बिखरा कर स्मित
भरे उजाले
ले आसमाँ की
टोह
सूनी पड़ी राहों की।
16
भाव के वेग
तट के आगोश में
लिपट रहे
उत्ताल ये लहर
नाचे ताल तरंग।
17
बरसा जल
सरसाए सावन
आनन्दोत्सव
अंकुरित हो रहे
धरा -गर्भ से पात ।