शनिवार, 26 अक्तूबर 2019

891-दिवाली


डॉoजेन्नी शबनम
1.
सुख समृद्धि
हर घर पहुँचे
दीये कहते।
2.
मन से देता
सकारात्मक ऊर्जा
माटी का दीया।
3.
दीयों की जोत
दसों दिशा उर्जित
मन हर्षित।
4.
अमा की रात
जगमगाते दीप
ज्यों हो पूर्णिमा !
5.
धरा ने ओढ़ा
रोशनी का लिहाफ
जलते दीये।
6.
दिवाली दिन
सजावट घर-घर
फैला उजास।
7.
बंदनवार
स्वागत व सत्कार
लक्ष्मी प्रसन्न।

-0-
2-मंजूषा मन
1
उजियारे बोए हैं,
हमने दीपक बन
अँधियारे धोए हैं।
2
हर तरफ उजाला है,
बाती दीपक का
यह काम निराला है।
3
हम दीप जलाएँगे,
गहन अँधेरे का
साम्राज्य मिटाएँगे।
4
ये जीत न पाएगा,
छाया अँधियारा
पल में मिट जाएगा।
5
इक दीप जलाएँगे,
मन में पसरा जो
अँधियार मिटाएँगे।



-0-


शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2019

890


1-मंजूषा मन
1
लिख दे प्रेम
अंतिम निर्णय-सा
तोड़ कलम।
2
प्रेम पुस्तक
कर दे हस्ताक्षर
अंतिम पृष्ठ।
3
ऋतु ने ओढ़ी
कोहरे की चादर
नर्म धवल।
4
बाहें समेटे
उकड़ू बैठे पेड़
सर्दी से डरें।
5
ओस के मोती
पत्तों पर ठहरे
चमकें हीरे।
6
किरचें बनीं
यादें बनके चुभीं
ओस की कनी।
-0-
2-आशा बर्मन
1.
फूल चन्दन
प्रार्थना व पूजन
हो शुद्ध मन
2
झर निर्झर,
संगीतमय स्वर
आनंद भर
3
हरित पात
रिमझिम बरखा
सद्यस्नात सा
4
फैला आकाश,
मुक्ति का एहसास
उड़ता पाखी
5
उदास मन
वेदनामय क्षण
अकेलापन
6
चल निकला
तर्कों का सिलसिला
कुछ न मिला
-0-

सोमवार, 14 अक्तूबर 2019

889 - कमला घटाऔरा (हाइबन)

अधूरी प्यास

कमला घटाऔरा



मन उदासी के पलों में जाने कहाँ -कहाँ भटकता रहता है ,न जाने किस अपने को ढूँढने मिलने जा पहुँचता है उस के पास । दूरियों की परवाह किये बिना ।तुरन्त मिलने का तो बस एक ही जरिया है सपने में उसे बुला लेना ,या आप उसके पास चले जाना ।मेरे मन ने या  उसके मन ने स्मृतियों के द्वार खड़काये और मैं वहाँ पहुँच गई उसके पास ।उस के जाने बिना अपना मन परचा कर ,उसे देख कर अधूरी प्यास लिये लौट भी आई अपनी दुनिया में ।ऐसा अक्सर हो जाता है जब उसे दिल से याद करूँ वह मिल ही जाती है । भले सपने में ही मिले ।सपना तो रात में आता है ।जिस से मिलने का मन किया वह भी तो सो रहा होगा ऐसे में तो मिलन नहीं हो सकता। मन सब जानता था मेरे यहाँ रात तो वहाँ सबेरा होता है ।अलग देशों का टाइम अलग होता है।सारी प्लानिंग मन ने सोच समझ कर की थी । भला  रूह के निमन्त्रण को वह कैसे नकार सकता था ।उसी ने याद किया होगा । मैं पहुँच गई वहाँ बिना किसी विघ्न - बाधा के। मैंने देखा वह कोई स्कूल स्थल था । एक मैडम ने अपना फोन देकर मुझे कहा ,उसे फोन करो वह आ रही है ,या कुछ और पूछने को कहा पर उस का संकेत यही था अपनी सहयोगी टीचर के बारे में पता करना । फोन पर बड़े बड़े अंक तो थे मैं पूछने ही वाली थी कि अनलॉक कैसे करूँ ? तभी उस का उधर से फोन आ जाता है ।देर से आने का कारण बताने के लिए ।मैं शायद उसी मैडम को मिलने गई थी वहाँ ।वह नहीं आई थी ।यह जानकर मैं उस के पास ही पहुँच गई उसके घर । बिना किसी सवारी के , बिना किसी से रास्ता पूछे । मन के रथ पर सवार को राह तलाशने की कहाँ जरूरत पड़ती है । बस एक इशारा ही काफी है । है न अजीब बात ! मन का रथ जहाँ चाहो ले चलो ।तुरन्त चल पड़ता है ।पर उसे काबू में करना आना चाहिये ताकि अपनी मर्जी न कर बैठे ।
 वह अपनी रसोई में नीचे पटरे पर बैठी नाश्ता कर रही थी। जैसे अक्सर गाँव में सर्दी के दिनों में रसोई में ही बैठकर खाना खाते थे लोग ।वह दृश्य मुझे मेरे बचपन में ले गया ,जब मैं ऐसे ही रसोई में बैठकर माँ के हाथ का ,कभी नानी या दादी के  हाथ का बना गर्म गर्म खाना खाया करती थी चूल्हे की आग के सामने ।मैं काफी देर उसे निहारती रही । वह अब देखती है , तब देखती है लेकिन नहीं , वह तो अपने ध्यान में धीरे धीरे खाना खाती रही । किसी मौन चिंतन में डूबी हुई जैसे मुद्दतों  बाद उसे फ़ुर्सत मिली हो अपने आपे से मिलने की ।मैंने पुकार कर उसका ध्यान भंग करना नहीं  चाहा । और मैं लौट आई मन में विषाद भर कर खिन्न मन से ।
भला ऐसा भी क्या ध्यान मगन होना किसी के आने की आहट तक न सुनाई दे। कोई बात नहीं , मिलने पर खबर लेती हूँ , अरे  नाश्ते को ना  पूछती सिर उठा कर देख तो लेती ।बड़ी निर्मोही हो गई हो तुम । यही है तेरा प्यार ! दिखाई न दो बोला तो करो ।दु:ख सुख खोला तो करो ।मन की तिजोरी को कभी कभी हवा भी लगा लिया करो ।मुद्दत हुई ,उससे बात किये ,कान तरसते रहें उसे सुनने को और उसके कानों पर जूँ तक नहीं रेंगी ।जाने वह किस गूढ़ रहस्य को सुलझाने में लीन थी ।उसके लिए वह क्षण कितने अनमोल होंगे ।मैं जानती थी ,इसलिए उसे आवाज नहीं दी ।लौट आई मन की मन में ले , प्यासी की प्यासी ।



मौन समाधि

कैसे तोड़ती भला

जुड़ी आपे से ।


कमला घटाऔरा

मंगलवार, 1 अक्तूबर 2019

888


नवरात्र की तृतीया तिथि माँ के चन्द्रघण्टा रूप के अर्चना-साधना की तिथि है। भगवान शिव के साथ विवाह के बाद देवी महागौरी ने मस्तक पर अर्धचंद्र धारण किया इसलिए उनका नाम चंद्रघंटा पड़ा। देवी के इस रूप की आराधना करने से  जीवन में उन्नति, धन, स्वर्ण, ज्ञान व शिक्षा की प्राप्ति होती है। माँ चंद्रघंटा  को कनेर का फूल अत्यंत प्रिय हैमाँ चंद्रघंटा  की पूजा करने से साहस बढ़ता है और भय से मुक्ति मिलती है। माँ चन्द्रघण्टा को नमन एक सेदोका के माध्यम से।
डॉo शिवजी श्रीवास्तव
1
चन्द्रघण्टा माँ
शिव अनुरंजिनी
धारे हैं अर्द्ध चन्द्र,
हरें बाधाएँ
ज्ञान दें समृद्धि दें
भक्तों के क्लेश हरें!
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