गुरुवार, 30 सितंबर 2021

988-अब तुम्हारी बारी

                                           

 प्रियंका गुप्ता

 

बहुत बोलती थी वो...। जब बोलना शुरू करती तो लगता मानो किसी ने नल की धार खुली छोड़ दी हो और उसे बंद करना भूल गया हो । नल की धार से तो फिर भी कभी-न-कभी बाल्टी भर जाया करती है, पर उसकी बातों से मेरा दिल कभी नहीं भरता था । उसकी बातों में उसकी एक अलग ही दुनिया बसती थी, जिसकी खुशबू भी ऐसी जिसे कभी सूँघा न हो । मैं ओक में भर-भरकर उसकी बातें पीता रहता, पर प्यास थी कि बुझती ही नहीं थी ।

“तुमको फिर बोर कर दिया न मैंने ?”  वो सहसा नल बंद कर देती । मैं लाख `न’ कहता, पर वह तो बिलकुल निष्ठुर हो जाती, ” , अब तुम्हारी बारी...तुम सुनाओ ।

मैं उसे पुचकारता, उसकी चिरौरी करता...पर उसे न तो मानना होता, न वह मानती । नज़रें नीचे झुकाए, सामने कहीं भी किसी अदृश्य से दाग़ को नाखून से खुरचते हुए वह बस इतना ही कहती- अब तुम्हारी बारी...।

बातें तुम्हारी

ज्यों नदिया की धारा

बहती रहे ।                                                                                  

-0-

2-रश्मि विभा त्रिपाठी

1

प्रिय दूर नगर रहते

मेरे सुख- दुख की

दिन- रात खबर रखते।

2

हम निमिष जरा रोएँ

बीज दुआ के प्रिय

मन- क्यारी में बोएँ ।

3

क्या दूँ अब परिभाषा

मुझको बिन देखे

प्रिय पढ़ लें मन-भाषा।

4

पीड़ा जो अँखुआए

प्रेमिल औषधि ले

प्रिय मन द्वारे आए

5

हम जिस पल घबराएँ

दूर बसे वे प्रिय

फिर चैन नहीं पाएँ।

6

यादों के वे पल-छिन

मन के सागर में

मोती जैसे अनगिन ।

7

सारे ही दुख आँके

सुख-नग आँचल में

माही ने आ टाँके ।

8

मन फूलों- सा खिलता

सुनकर टेर कभी

माही जब आ मिलता ।

9

किरणों सा रूप गढ़ा

मन के अम्बर पर

प्रिय प्रेमिल सूर्य चढ़ा ।

10

दिन- रैना उजियारे

ज्योतित दीपक हैं

आशा के मन- द्वारे ।

11

वारा जिन प्यारों पे

यह मन भेंट चढ़ा

उनकी तलवारों पे।

12

कुछ तो बीमारी है

मुख से फूल झरे

मन धार- कटारी है ।

13

कुछ तो वह प्यारा है

जग के झंझट ने

कुछ और निखारा है ।

14

वह कितना भोला है

प्रेम- तराजू में

स्वारथ को तोला है ।

15

कब सुख आभा भाई

आँगन में जग ने

दुख- समिधा सुलगाई ।

-0-

 

बुधवार, 29 सितंबर 2021

987

 दिनेश चन्द्र पाण्डेय

 1-सेदोका

1

प्यारी बेटियाँ

मीठे कलरव से

घर-चौरा गुँजाती

वक्त की बात

सूना घर ढूँढता

उड़ा प्रवासी पंछी

2.

वसुधा- संग

लिपटी रही रात

किलोल क्रीड़ारत

पूर्णेंदु विभा

छलकी प्रेम- सुधा

बेसुध अंग-अंग

3.

प्रिय संग थी
मधु रा क्षणों में
अलबेली सजनी
चंचल चाँद
झरोखे से झाँकता
सस्मित लौट गया
4

जागा मार्तंड

दिशाएँ दीप्त हुईं

स्निग्ध कांति पसरी

निहाल धरा

निखरे हिमाद्रि के

शुभ्र श्वेत शिखर

5.

आँखें खोई थीं

बहुसंख्य तारों में

जब सामने ही था

जाने कब से

काम्य चाँदनी लुटा

हँस रहा था चाँद

6.

बरस पड़े

काले मेघ कुंतल

धरा के आँगन में

श्रावणी धरा

सजी धानी वस्त्रों में

झूमे दादुर मोर

-0-

 2-ताँका

1.

रसाल- कुंज,

घुघुती गाती फिरी

मिलन गीत

विरही पपीहरा

सुन पूछे पी-कहाँ ?

2.

दीप्त हो गया

झील का श्याम जल

जब तले में

भटककर आया

चाँद सुस्ताने लगा

3.

शिशिर रात,

निस्तब्ध प्रकृति,

झरते नित

नभ दृग से आँसू,

क्लिन्न पातों का गात

4.

सावन आया,

पुरवा छेड़ रही

कजरी रा

किसने झूला डाला ?

अमराई में आज

-0-

रविवार, 26 सितंबर 2021

986

 माहिया

 रश्मि विभा त्रिपाठी

1


तुमको जबसे देखा

पढ़ना छोड़ चुकी

हाथों की अब रेखा ।

2

मन जब भी हारा है

इकलौता सम्बल

प्रिय नाम पुकारा है ।

3

जीवन भर ना भूलूँ

झूला यादों का

ले संग तुम्हें झूलूँ ।

4

मन- प्राणों पर छाए

पलकें पुलकित हैं

प्रिय-दर्शन जो पाए ।

5

प्रिय ने सींचा धीरज

मन के दरिया की

हर आशा नव नीरज।

6

मैंने प्रिय को पूजा

इष्ट जगत में अब

है कोई ना दूजा ।

7

हाथों को कब देखा

मेरे प्रियतम ने

बदली है हर रेखा ।

8

यह मेरा शुभ गहना

चूनर नेह- जड़ी

ओढ़ाते जब सजना ।

9

दुख सारे माटी हैं

आँचल में प्रिय ने

मुसकानें बाँटी हैं।

10

साँसें जो चलती हैं

तेरी ही यादें

मेरे हिय पलती हैं ।

11

प्रिय ने ही बोए हैं

मैंने आँखों में

जो ख़्वाब सँजोए हैं ।

-0-

शुक्रवार, 24 सितंबर 2021

985

 1-किस्सा-ए जाने क्या

 प्रियंका गुप्ता                                  


मैं बहुत दिनों से एक बात नोटिस कर रहा था ।
उसकी एक अजीब सी आदत बन गई थी । जब भी मैं उसे कोई ज़रूरी बात करता, उसे कुछ समझाने की कोशिश करता, तो कुछ देर तो वह बहुत गौर से मेरा मुँह ताकती रहती, फिर पर्स से डायरी और पेन निकालकर जाने क्या लिखने लगती । मैं खीजता, तो कहती...कैरी ऑन, मैं सुन रही हूँ...पर मैं चुप हो जाता । वो लाख मनाती, पर इस मामले में तो मैं कतई न मानता । हर बार कसम खाता, चाहे कुछ भी हो जाए, इसको कोई भी बुद्धि वाली बात नहीं बताऊँगा । रहे अपने बचपने में...करती रहे बचकानापन...मुझे क्या...? मैं तो अब उससे बात ही नहीं करूँगा । मिलेगी, तो बस बेवकूफों की तरह उसका मुँह ताकता रहूँगा । पर हर बार उसको सामने देखते ही मैं फिर से अपनी सब कसमें भूल जाता और फिर वही सिलसिला शुरू हो जाता । उसकी बेवकूफियाँ, नादानियाँ...उसका रूठना और मेरा मनाना । उसकी बचकानी- सी ज़िदें और उनको पूरा करता मैं...और फिर कभी किसी शांत से पलों में मेरा उसको ज़िंदगी का फलसफा समझाना और उसका वो डायरी निकालकर बैठ जाना ।

इस बार मैंने तय कर लिया था, या तो वो अपनी ये आदत बदले या फिर जिस डायरी में जो कुछ बकवास लिखने के लिए वो मेरी बातें अनसुनी करती है,  मुझे अपनी वो डायरी दिखा इस लिए उस दिन जैसे ही उसने डायरी और पेन निकाला, मैंने उसका हाथ पकड़ लिया-‘क्या करती हो इसमें ?’

उसने मेरा मुँह कुछ पल के लिए फिर ताका और धीमे से डायरी मेरे हाथ में थमा दी-तुम्हारे किसी फेवरेट शायर ने कहा था न, वो बोले तो मुँह से फूल झरते हैं । जब तुम बोलते हो न, मैं उन्हीं फूलों को अपनी डायरी में सहेज कर रख लेती हूँ।’

वो सच में बचकानी थी न...?

काँटों में खिली

फिर याद आ गई

पगली कली

-0-

2  रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'

1


कब मन को पढ़ते हैं

वे दिल पाथर के

पीड़ाएँ गढ़ते हैं।

2

जग की यह रीत भली

औरों की पीड़ा

किसके मन आन पली।

3

मन-प्रीत बुरी जोड़ी

जग ने स्वारथ की

हर सीमा है तोड़ी।

4

मन अपना जोगी है

स्वारथ की सत्ता

इसने कब भोगी है।

5

वे जन जग में विरले

परहित हेतु सदा

जिनके मन भाव पले ।

6

आओ मिल कर रो लें

आँखों की कोरें

करुणा- जल से धो लें।

7

ताकत अद्भुत मन की

रोज परीक्षा दे

यह प्रेम- समर्पण की।

8

सब तम जो छँट जाता

देख सकल सच मन

टुकड़ों में बँट जाता ।

9

कितनी यह रात भली

वाद-विवादों पर

रख दे इक मौन- डली ।

10

मधुगीत हवा गाए

मेरी साँसों को

तेरा सुर महकाए।

11

बाहों के वो झूले

प्रेमिल ऋतु सावन

हम अब तक ना भूले।

-0-