प्रियंका गुप्ता
बहुत बोलती थी वो...। जब बोलना शुरू करती तो
लगता मानो किसी ने नल की धार खुली छोड़ दी हो और उसे बंद करना भूल गया हो । नल की
धार से तो फिर भी कभी-न-कभी बाल्टी भर जाया करती है, पर उसकी बातों से मेरा दिल कभी नहीं भरता था । उसकी बातों में उसकी एक अलग
ही दुनिया बसती थी, जिसकी खुशबू भी ऐसी जिसे कभी सूँघा न हो
। मैं ओक में भर-भरकर उसकी बातें पीता रहता, पर प्यास थी कि
बुझती ही नहीं थी ।
“तुमको फिर बोर कर दिया न मैंने ?” वो सहसा नल बंद कर देती । मैं लाख
`न’ कहता, पर वह तो बिलकुल निष्ठुर हो जाती,
” न, अब तुम्हारी बारी...तुम सुनाओ ।”
मैं उसे पुचकारता, उसकी चिरौरी करता...पर उसे न तो मानना होता, न वह
मानती । नज़रें नीचे झुकाए, सामने कहीं भी किसी अदृश्य से दाग़
को नाखून से खुरचते हुए वह बस इतना ही कहती- अब तुम्हारी बारी...।
बातें तुम्हारी
ज्यों नदिया की धारा
बहती रहे ।
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2-रश्मि विभा त्रिपाठी
1
प्रिय
दूर नगर रहते
मेरे
सुख- दुख की
दिन- रात खबर रखते।
2
हम
निमिष जरा रोएँ
बीज
दुआ के प्रिय
मन-
क्यारी में बोएँ ।
3
क्या
दूँ अब परिभाषा
मुझको
बिन देखे
प्रिय
पढ़ लें मन-भाषा।
4
पीड़ा
जो अँखुआए
प्रेमिल
औषधि ले
प्रिय
मन द्वारे आए
5
हम
जिस पल घबराएँ
दूर
बसे वे
प्रिय
फिर
चैन नहीं पाएँ।
6
यादों
के वे पल-छिन
मन
के सागर में
मोती
जैसे अनगिन ।
7
सारे
ही दुख आँके
सुख-नग
आँचल में
माही
ने आ टाँके ।
8
मन
फूलों- सा खिलता
सुनकर
टेर कभी
माही
जब आ मिलता ।
9
किरणों
सा रूप गढ़ा
मन
के अम्बर पर
प्रिय
प्रेमिल सूर्य चढ़ा ।
10
दिन-
रैना उजियारे
ज्योतित
दीपक हैं
आशा
के मन- द्वारे ।
11
वारा
जिन प्यारों पे
यह
मन भेंट चढ़ा
उनकी
तलवारों पे।
12
कुछ
तो बीमारी है
मुख
से फूल झरे
मन
धार- कटारी है ।
13
कुछ
तो वह प्यारा है
जग
के झंझट ने
कुछ
और निखारा है ।
14
वह
कितना भोला है
प्रेम- तराजू में
स्वारथ
को तोला है
।
15
कब
सुख आभा भाई
आँगन
में जग ने
दुख- समिधा सुलगाई ।
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