शुक्रवार, 24 सितंबर 2021

985

 1-किस्सा-ए जाने क्या

 प्रियंका गुप्ता                                  


मैं बहुत दिनों से एक बात नोटिस कर रहा था ।
उसकी एक अजीब सी आदत बन गई थी । जब भी मैं उसे कोई ज़रूरी बात करता, उसे कुछ समझाने की कोशिश करता, तो कुछ देर तो वह बहुत गौर से मेरा मुँह ताकती रहती, फिर पर्स से डायरी और पेन निकालकर जाने क्या लिखने लगती । मैं खीजता, तो कहती...कैरी ऑन, मैं सुन रही हूँ...पर मैं चुप हो जाता । वो लाख मनाती, पर इस मामले में तो मैं कतई न मानता । हर बार कसम खाता, चाहे कुछ भी हो जाए, इसको कोई भी बुद्धि वाली बात नहीं बताऊँगा । रहे अपने बचपने में...करती रहे बचकानापन...मुझे क्या...? मैं तो अब उससे बात ही नहीं करूँगा । मिलेगी, तो बस बेवकूफों की तरह उसका मुँह ताकता रहूँगा । पर हर बार उसको सामने देखते ही मैं फिर से अपनी सब कसमें भूल जाता और फिर वही सिलसिला शुरू हो जाता । उसकी बेवकूफियाँ, नादानियाँ...उसका रूठना और मेरा मनाना । उसकी बचकानी- सी ज़िदें और उनको पूरा करता मैं...और फिर कभी किसी शांत से पलों में मेरा उसको ज़िंदगी का फलसफा समझाना और उसका वो डायरी निकालकर बैठ जाना ।

इस बार मैंने तय कर लिया था, या तो वो अपनी ये आदत बदले या फिर जिस डायरी में जो कुछ बकवास लिखने के लिए वो मेरी बातें अनसुनी करती है,  मुझे अपनी वो डायरी दिखा इस लिए उस दिन जैसे ही उसने डायरी और पेन निकाला, मैंने उसका हाथ पकड़ लिया-‘क्या करती हो इसमें ?’

उसने मेरा मुँह कुछ पल के लिए फिर ताका और धीमे से डायरी मेरे हाथ में थमा दी-तुम्हारे किसी फेवरेट शायर ने कहा था न, वो बोले तो मुँह से फूल झरते हैं । जब तुम बोलते हो न, मैं उन्हीं फूलों को अपनी डायरी में सहेज कर रख लेती हूँ।’

वो सच में बचकानी थी न...?

काँटों में खिली

फिर याद आ गई

पगली कली

-0-

2  रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'

1


कब मन को पढ़ते हैं

वे दिल पाथर के

पीड़ाएँ गढ़ते हैं।

2

जग की यह रीत भली

औरों की पीड़ा

किसके मन आन पली।

3

मन-प्रीत बुरी जोड़ी

जग ने स्वारथ की

हर सीमा है तोड़ी।

4

मन अपना जोगी है

स्वारथ की सत्ता

इसने कब भोगी है।

5

वे जन जग में विरले

परहित हेतु सदा

जिनके मन भाव पले ।

6

आओ मिल कर रो लें

आँखों की कोरें

करुणा- जल से धो लें।

7

ताकत अद्भुत मन की

रोज परीक्षा दे

यह प्रेम- समर्पण की।

8

सब तम जो छँट जाता

देख सकल सच मन

टुकड़ों में बँट जाता ।

9

कितनी यह रात भली

वाद-विवादों पर

रख दे इक मौन- डली ।

10

मधुगीत हवा गाए

मेरी साँसों को

तेरा सुर महकाए।

11

बाहों के वो झूले

प्रेमिल ऋतु सावन

हम अब तक ना भूले।

-0-

10 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

बहुत ही सुन्दर हाइबन।
हार्दिक बधाई आदरणीया🌷💐

मेरे माहिया प्रकाशित करने के लिए आदरणीय सम्पादक जी का हार्दिक आभार।
सादर

Anita Manda ने कहा…

कितनी यह रात भली

वाद-विवादों पर

रख दे इक मौन- डली ।



बहुत सुंदर सार्थक शिक्षाप्रद व साथ ही मधुर; यह एक माहिया सब पर भारी है।
बहुत बधाई विभा जी।

खूबसूरत, मीठा- मीठा सा हाइबन; बहुत बधाई प्रियंका जी।

सदा ने कहा…

बहुत ही शानदार

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

सबसे पहले तो बहुत बहुत आभार मेरे हाइबन को यहाँ स्थान देने के लिए | आप सबकी स्नेहमयी टिप्पणियों के लिए भी शुक्रिया...दिल से...|
रश्मि जी की पंक्तियाँ दिल छू गई, बहुत बधाई |

dr.surangma yadav ने कहा…

बहुत सुंदर हाइबन,लाजवाब माहिया।बधाई आप दोनों को।

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत भावपूर्ण हाइबन, बधाई.

Ramesh Kumar Soni ने कहा…

अच्छी रचनाएँ-बधाई ।

बेनामी ने कहा…

मेरे माहिया आप सभी को पसंद आए, हृदय तल से आभार ।

सादर 🙏🏻

Krishna ने कहा…

हाइबन और माहिया दोनों शानदार...बधाई।

सविता अग्रवाल 'सवि' ने कहा…

प्रियंका जी का हाइबन सुंदर रचना है । रश्मि जी के माहिया भी पसंद आए आप दोनो को बधाई।