सोमवार, 31 अगस्त 2020

933-यादें


यादें
मीनू खरे

काले गहरे 
साँसों पे भी पहरे 
है मुलाक़ात 
अब नामुमकिन 
तू ऐसा कर !
ख़्वाब में  के मिल...
याद करके 
सो गई हूँ मैं तुझे
रोज़ की तरह ही!!!

शनिवार, 22 अगस्त 2020

932

 1-तुम’ 

डॉ. पूर्वा शर्मा

‘मैंने तुम्हें दबाकर रखा है’- इस बात का मुझे भली-भाँति ज्ञान है । मैंने तुम्हें
बाहर निकलने का कोई अवसर नहीं दिया, पर क्या करूँ ! मेरी भी मजबूरी है । यदि तुम्हें किसी ने देख लिया , तो सब जान जाएँगे कि माज़रा क्या है ! दरअसल तुम तो हरपल मेरे साथ ही हो, दिखो या न दिखो तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । वैसे
तुमको छुपाकर रखना कोई आसान कार्य नहीं । पल-पल सहना पड़ता है, तिल-तिल
बहुत जलना पड़ता है । हृदय में उठी असहनीय पीड़ा एवं तेज़ कंपन के बावजूद भी तुम्हें छुपा लेने का कारण मेरे इतने वर्षों का अभ्यास ही है कि तुम्हें कोई देख नहीं पाता । हाँ, कई बार कोई संवेदनशील व्यक्ति सामने आ जाए तो वह तुम्हारे होने का एहसास भाँप लेता है, लेकिन इनसे बचने के अनेक उपाय भी मैंने खोज रखे हैं - नज़रें झुका लेना, मुँह फेर लेना या थोड़ी दूरी बना लेना इत्यादि । कई बार बहुत कठिन होता है यह सब करना, किन्तु तुम्हें इस ज़ालिम दुनिया से छुपाने में मैंने महारत हासिल की है । सच कहूँ तो तुम्हीं मेरी ताकत हो । वैसे तुम भी बड़े होशियार हो ! सबके जाने के बाद, धीरे से एकांत में....... तुम बिन बुलाए ही चले आते हो, पता नहीं कैसे, पर तुम इस बात का अंदाज़ा लगा लेते हो कि अब कोई नहीं है तुम्हें देखने वाला । तुम नैनों के कपाट खोल बहुत ही तेज़ रफ़्तार से बाहर चले आते हो, तुम्हारे बाहर आते ही तुम्हारा ‘यह घर’ गुलाबी और फिर धीरे-धीरे सुर्ख लाल हो जाता है । हर बार सबसे छुपने वाले, सामने न आने वाले ‘तुम’ ; अबकी बार
रुकते नहीं, नैनों से कपोल और फिर न जाने कहाँ-कहाँ तक का सफर तय करते हो । कई बार हथेली, तो कभी तकिया, तो कभी कहीं ओर..... मेरा रोम-रोम भीगोकर, सब कुछ नम-सा कर जाते हो । बहुत मुश्किल से तुम्हें बाहर आने की आज़ादी मिलती है, तो तुम इस बाहर की दुनिया में जी भरकर घूमते हो, अनवरत बहते ही रहते हो । ऐसे समय पर तुम्हें रोकना मेरे बस की बात भी नहीं, मेरे मन में भी यही सोच उठती है कि कोई नहीं देख रहा तो छककर, पेट भरकर तुम इस बाहरी दुनिया का मज़ा ले लो । एक कमाल की बात है कि अपना निश्चित समय बिताने पर तुम फिर से वहीं छुप जाते हो, इस बाहरी दुनिया से गुम हो जाते हो और फिर से इन नैनों की कैद में चुपचाप जाने के लिए तैयार .... । दूसरी कमाल की बात यह है कि बाहर तो तुम घूमते हो , लेकिन उसका सुकूँ मुझे मिलता है ,जैसे इस हृदय के घावों पर तुमने कोई जादुई  लेप लगा दिया   हो । वैसे अच्छा ही है तुम सबके सामने बाहर नहीं आते, तुम्हीं तो मेरी जादुई  शक्ति हो ; जो मुझे अंदरूनी ताकत देती है और मजबूत बनाती है । बस सफलता इसी में हैं कि तुम्हें सहेजकर, छुपाकर अपने नैनों में रखा है । जहाँ कोई भी तुम्हें देख नहीं पाता ।
 नहीं दिखते,
एकांत में रिसते
जादुई मोती ।
-0-
2-सन्ताप भार
रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'

"इक अम्बर का ही सहारा था....वो दूर क्या गया....सब कुछ बिखर गया...."
"भूमि ये भार क्यों सहती है बेटी! कहीं कुछ भी नहीं बिखरा....हाँ टूटा ज़रूर है....
एक सहारे की उम्मीद ही है, जो तोड़ रही है तुझे.....खुद को मजबूत बना
वरना इस तरह से बिखरेगी कि फिर कभी खुद को समेट नहीं पाएगीजिसे आना ही नहीं इस गली....उसके लौट आने की आस में दरवाजे की चौखट पर खड़ी हो ,उसका रास्ता ताकने की बजाय खुद के अन्दर भी देख कभी....! तुझमें ही वो इक जज्बा है....,जो देगा मुश्किल हालात से लड़ने की शक्ति अपार...जो ले कर जागा तुझे हर बाधा के पार....
ये अकेलेपन का दु:क्यों ???
इस बोझ के तले मन क्यों दबा हुआ है तेरा ???
तू अकेली कहाँ है....,तेरी हिम्मत हर पल तेरे साथ है बेटी...
जरूरत है तो सिर्फ़ और सिर्फ़ खुद को पहचानने की....!

संताप-भार
दबा जाता हृदय
निकल पार ।
-0-

सोमवार, 10 अगस्त 2020

931

 ज्योत्स्ना प्रदीप 

1

सोई   आँखें   मूँदें

छोड़  गई  मन  माँ 

ग़म की अनगिन बूँदें ।

2

जो  हमको समझाती 

जिसने जनम दिया 

इक दिन वो भी जाती !

3

बिन नींदों  की  रैना 

तेरे जाने से 

भरते  रे  घन-नैना 

4

कैसी लाचारी थी 

आँखों  की पीड़ा 

होठों न उतारी थी !

5

माँ जैसा कब  कोई 

तेरी  छाँव   तले 

मीठी  नींदें   सोई ।

6

मुरझाई तुलसी है 

तेरी छाँव  नहीं 

श्यामा भी झुलसी है ।

7

कुछ अपनों को लूटें 

फ़ूलों  की क्यारी 

कुछ  ज़हरीले  बूटे ।

8

वो घर  था  माई  का 

जब वो  छोड़  चली 

घर  है अब  भाई  का ।

9

हर  बेटी  रोती   है 

मात -पिता के  बिन 

मैके  ग़म  ढोती  है ।

10

मैका अब छूट  गया 

पावन नातों  को 

लालच  ही लूट गया !

11

अपने ही छलते हैं 

दीपक के भीतर 

अँधियारे पलते हैं ।

12

कुछ  ख़ास मुखौटे थे 

आँखों की चिलमन 

सोने   के   गोटे थे 

13

धन का आलाप करें 

इसकी ही ख़ातिर 

'अपने 'ही पाप करें ।

14

जिसने दौलत लूटी 

करतल खाली थी 

काया जब भी छूटी !

15

वो  प्यारा नग दे दो 

छू लूँ पाँवों  को 

पावन वो पग दे दो !

-0-

शनिवार, 8 अगस्त 2020

930

 सुदर्शन रत्नाकर

1

बहती तेज़ हवाएँ

बूँदों  से मिलके

मन में आस जगाएँ।

2

लोगों से मत डरना

तेरे बिन साजन

अब जीकर क्या करना।

3

चुप-चुप क्यों रहते हो

मन की बात करो

कितने दुख सहते हो

4

झूम रहा बादल है

मिलने को आतुर

यह दिल तो पागल है।

5

ऊँची दीवारें हैं

तुम बिन सूना घर

बेकार बहारें हैं।

6

फूलों की क्यारी है

बेटी बोझ नहीं

वो सब की प्यारी है।

7

काजल तो काला है

केवल ईश्वर ही

सबका रखवाला है।

8

छाया अँधियारा है

मत घबरा साथी

आगे उजियारा है।

9

आँसू या मोती हैं

चाँद चमकता है

रजनी क्यों रोती है।

1

समय बुरा आया है

अपने ही घर में

अब क़ैद कराया है

-0-

सुदर्शन रत्नाकर

मोबाइल-9811251135