चोका /
डॉ.पूर्वा शर्मा
तेरी नेह वर्षा में
भीग न जाऊँ
तेरी नेह-वर्षा में
यही सोचके
कसकर पकड़ी
वक्त-छतरी,
पर न जाने कैसे
इसको लाँघ
भीगता ही रहा ये
मन औ’ तन,
एक अरसे बाद
पाया खुद को
पूर्णतः ही प्लावित,
लबालब था
प्रत्येक रोम मेरा,
इन बूँदों ने
तर कर ही दिया
सूखा जीवन मेरा ।
-0-
2-लम्हें-ही लम्हें
देखे हैं मैंने
तरह-तरह के
लम्हें ही लम्हें,
तेरे साथ बिताए
नायाब लम्हें,
तेरी जुदाई वाले
भीगे-से लम्हें,
झट से गुज़रे थे
तेरी बाहों में,
युग जैसे बीते थे
इंतज़ार में,
ज़िंदगी में बसे हैं
लम्हें ही लम्हें,
कभी इश्क से मीठे
कभी कड़वे-
करैत के विष से,
चखा करूँ मैं
हर लम्हें का स्वाद,
बयाँ करते
सभी लम्हें, महज़
दास्तान तेरी -मेरी
।
-0-