डॉ सुधा गुप्ता
1
बूढ़ा पीपल
कामनाओं के धागों
बँधा-जकड़ा खड़ा
मन्नतों -लदा
याचना-भार -दबा
रात-दिन जागता ।
2
चकोर-मन
चाँद को चाहकर
सदा ही छला गया
प्रेम-अगन
अंगार खा झुलसा
मिलन को तरसा ।
3
मन मोहा था
मिसरी-सी आवाज़
रूप भी सलोना था,
एक पत्थर
दिल की जगह पे
रख दिया, ये क्या किया !
4
उसने मुझे
कोरे सफ़े दिये थे
क्या लिखूँ पता न था,
वक़्त चुका है
बड़ी शर्मिन्दग़ी में
लौटाऊँ अब कैसे ?
5
द्रौपदी-सखा
बिना कहे समझे
सदा उसकी व्यथा
जब पुकारा
तुरन्त दौड़ पड़े
विपदा से उबारा ।
6
उम्र क़ैद है
बूढ़ी माँ की कोठरी
खुलते न कपाट
बेमियाद ये
कितनी लम्बी डोर !
पाया ओर न छोर ।
7
मलाल यही-
अनमोल ज़िन्दगी
कौड़ियों मोल बिकी
‘रत्ती’ का भाग्य
बैठकर तराजू
हीरा -सोना तोलती ।
8
नई सभ्यता
बस्ते का बोझ भारी
लूटा है बचपन
डकैत बन
खो गई है मुनिया
बनैले जन्तु-वन ।
9
मैना यूँ बोली-
सोने की सलाख़ों में
गीत मेरे रूठे हैं
मुक्ति दो मुझे
पंख फरफड़ाऊं
प्रीत का राग गाऊँ ।
10
आँख जो खोली
क्रूर साहूकारिन
ज़िन्दगी यूँ थी बोली-
‘थमना नहीं
कर्ज़ अदायगी में ‘
उम्र तमाम हुई ।
11
जोगी ठाकुर !
मीरा के पाँव तुम
घुँघरू बाँध गए,
मुड़ न देखा -
छाले रिसते रहे
मीरा नाचती रही ।
12
आशा के बीज
रेत में बोकर मैं
रोज सींचती रही
उगा न एक
समय , पानी, श्रम
बरबाद हो गए ।
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