गुरुवार, 29 नवंबर 2012

क्या लिखूँ पता न था,


डॉ सुधा गुप्ता
1
बूढ़ा पीपल
कामनाओं के धागों
बँधा-जकड़ा खड़ा
मन्नतों -लदा
याचना-भार -दबा
रात-दिन जागता ।
 2
चकोर-मन
चाँद को चाहकर
सदा ही छला गया
प्रेम-अगन
अंगार खा झुलसा
मिलन को तरसा ।
3
मन मोहा  था
मिसरी-सी आवाज़
रूप भी सलोना था,
एक पत्थर
दिल की जगह पे
रख दिया, ये क्या किया !
4
उसने मुझे
कोरे सफ़े दिये थे
क्या लिखूँ पता न था,
वक़्त चुका है
बड़ी शर्मिन्दग़ी  में
लौटाऊँ  अब कैसे ?
5
द्रौपदी-सखा
बिना कहे समझे
सदा उसकी व्यथा
जब पुकारा
तुरन्त दौड़ पड़े
विपदा से उबारा ।
6
उम्र क़ैद है
बूढ़ी माँ की कोठरी
खुलते न कपाट
बेमियाद ये
कितनी लम्बी डोर !
पाया ओर न छोर ।
7
मलाल यही-
अनमोल ज़िन्दगी
कौड़ियों मोल बिकी
‘रत्ती’ का भाग्य
बैठकर तराजू
हीरा -सोना तोलती ।
8
नई सभ्यता
बस्ते का बोझ भारी
लूटा है  बचपन
डकैत बन
खो गई  है मुनिया
बनैले जन्तु-वन ।
9
मैना यूँ बोली-
सोने की सलाख़ों में
गीत मेरे रूठे हैं
मुक्ति दो मुझे
पंख फरफड़ाऊं
प्रीत का राग गाऊँ ।
10
आँख  जो खोली
क्रूर साहूकारिन
ज़िन्दगी यूँ थी बोली-
‘थमना नहीं
कर्ज़ अदायगी में ‘
उम्र तमाम हुई ।
11
जोगी ठाकुर !
मीरा के पाँव तुम
घुँघरू बाँध गए,
मुड़ न देखा -
छाले रिसते रहे
मीरा नाचती रही ।
12
आशा के बीज
रेत में बोकर मैं
रोज सींचती रही
उगा न एक
समय , पानी, श्रम
बरबाद हो गए ।
-0-

बुधवार, 28 नवंबर 2012

गुरु पर्व आया


डॉ  सरस्वती  माथुर
 कपूरी हवा
 मौसम की बेल से
 लिपटी रही
 स्वागत करने को
 लौट के आई 
 कुतरती सरदी 
 श्याम चिड़िया
तितलियों संग
फूलों पे डोली
तुलसी मंज़री से
थाल सजाया
संग में गुरु पर्व
आस्था लेकर
 पूर्णिमा पर आया
 गुरु सबद
 गुरुवाणी फूलों से
 चहुँ ओर महके ।
 -0- 

सोमवार, 26 नवंबर 2012

हरियाली


प्रियंका गुप्ता
1
हिसाब रखो
खुशी भरे पलों का
दुःखों का नहीं
अँधेरों से ज्यादा
रौशनी भली लगे ।
2
कितने काटे
घने दरख़्त, वन
रहने भी दो
ज़मीं पे घास ही को -
हरियाली का भ्रम ।
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ढूँढती साँसें


शशि पाधा

नहीं जानती
क्यों लेखनी है कुंद
क्यों भाव मंद
कहाँ  खोई कल्पना
कौन दिशा में
बहती संवेदना
शब्द हैं मौन
अधर चुपचाप
ढूँढती साँसें
हवाओं  में संगीत
रूठी -सी प्रीत
कि मन फिर गाए
सावन लौट  आए ।
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शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

जीवन ठहर गया


सुदर्शन रत्नाकर

1

ये नदियाँ बहती हैं

सागर से मिलने

कितने दु:ख सहती हैं ।


2

काजल की रेखा है

आगे क्या होगा

किसने यह देखा है ?

3

ये बंधन झूठे हैं

क्यों विश्वास करूँ

साजन जो रूठे हैं  ।

4

आशा अब टूट गई

जीवन ठहर गया

साँसें  जब छूट गई ।

5

यूँ मत समय गँवाओ

जब तक साँसें हैं

कुछ तो करते जाओ ।

6

तुम क्यों दु:ख सहते हो

मत अभिमान करो

साथ नहीं रहते हो ।

7

सूरज तो डूबेगा

घबरा मतसाथी

चन्दा भी निकलेगा ।

8

तुम भी तो कुछ बोलो

मिलकर रहना है

विष दिल में मत घोलो

9

पाखंड रचाते हो

दिल में रब तेरे

क्यों मंदिर जाते हो ?

10

मुश्किल तुमको पाना

नींद  नहीं टूटे  

सपनों में आ जाना ।

11

चाँद सजी रातें हैं

आकर मिल साथी

कहनी कुछ बातें हैं

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देखो हवा न देना!


सुशीला शिवराण
1
छोटी ज़िंदगी
भर दें खुशियों से
हम सबकी
कर स्नेह बौछार
पाएँ हर्ष अपार।
2
छाया: सुशान्त काम्बोज
कटते वृक्ष
सूखती हरियाली
छिनते नीड़
छिनती प्राण वायु
बढ़ती जग -पीड़ ।
3
सुहानी भोर
खिड़की पे चिरैया
पूछती मोसे-
काहे को छीना नीड़
क्या तोहे बैर मोसे ?
4
फूलों का साथ
जीत में जयमाल
चढ़ें देवल
बनें प्रेम की भाषा
अंतिम-यात्रा साथ ।
5
क्यों है दारु
मानव का जीवन
विक्षिप्‍त है क्यों
श्रेष्‍ठ रचना तेरी
कह भाग्यविधाता!
6
राख का ढेर
दिखता है शीतल
छिपी  है यहाँ
सुलगती चिंगारी
देखो हवा न देना!

-0-

गुरुवार, 22 नवंबर 2012

धारा हूँ नदिया की


अनुपमा त्रिपाठी


छवि सुहाए
सूरतिया  पिया की
मनवा भाए
मूरतिया पिया की
नदिया हूँ मैं
सागर पियु मेरो
बहती जाऊँ
कथा सागर तक
कहती जाऊँ
पियु में समा जाऊँ
पीड़ा राह की
सकल सह जाऊँ ।

बन में ढूँढूँ
धारा- हूँ  जीवन की
घन  बिचरूँ
ज्यूँ धार नदिया की
कठिन पंथ
अलबेली -सी रुत
मोहे सताए
जिया नाहीं बस में
पीर घनेरी .
मनवा अकुलाए ।

बिपिन घने
मैं कित  मुड़  जाऊँ
पिया बुलाए
मन चैन न पाए  
बढ़ती जाऊँ
डगर चले मन
रुक ना पाए
अब कौन गाँव है
कौन देस है
नगरिया पिया की
रुक ना पाऊँ
कल- कल करती
बहती जाऊँ
छल -छल बहूँ मैं
सागर को  पा जाऊँ
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