मंगलवार, 30 नवंबर 2021

1009-आ बैठी मन- द्वारे

 

रश्मि विभा त्रिपाठी

1

प्रिय! श्रेष्ठ है


मात्र ये मन- प्रांत

वातावरण शांत

भाव- आसन्दी

बिछी कोमलकांत

आओ करें वृत्तांत।

2

तुमने टाँके

मेरे अंक में तारे

मिटाए अँधियारे

अपने सुख

मुझपे सदा वारे

प्रिय! तुम हो न्यारे।

3

मन उन्मन

जब- जब भी हारे

उनको ही पुकारे

प्रिय आ बालें

घर- आँगन- द्वारे

धैर्य- दीपक न्यारे।

4

मेरे प्रिय का

मधुर व्यवहार

मेरी मुक्ति का द्वार

जब सुनें वे

करुणा की पुकार

कष्टों से लें उबार।

5

अलि मैं सदा

जाती हूँ साधिकार

मेरे प्रिय के द्वार

वे भर देते

अंक में हर बार

प्रेम- निधि अपार।

6

प्रिय तुमने

प्यासे मन की प्याली

कभी न रखी खाली

नित्य उड़ेली

प्रेम- सुधा निराली

झूमूँ मैं मतवाली।

7

प्रिय सजाएँ

श्रद्धा से सदा थाली

जीमूँ हो मतवाली

भर देते हैं

रीते मन की प्याली

व्यंजन शोभाशाली।

8

माँगे सदैव

मनोकामना क्या- क्या

प्रिय- प्रेमिल- प्रज्ञा

अनुमोदित

अर्जी विशेषतया

हैं सहाय माँ आद्या।

9

प्रिय तुम्हीं से

रूप- रस औ गंध

जीवन- गीत- छंद

तोड़करके

दुख का तटबंध

मन गाता स्वच्छंद।

10

धरे देहरी

दुआ- दीप हजार

दीप्तिमान अपार

प्रियवर का

पुनीत यह प्यार

प्रकाश का त्योहार।

11

प्रिय ने जड़े

आँचल में आ तारे

औ सुख-नग सारे

ओढ़े ओढ़नी

आ बैठी मन- द्वारे

ओझल अँधियारे।

12

गाते हैं गीत

अति मधुरतम

आशा के विहंगम

प्रिय सजाएँ

स्नेह की सरगम

संगीत निरुपम।

13

प्रिये तुम्हारा

प्रार्थना का प्रबंध

देता दिव्य आनंद

मैं मुकुलित

मिटा सकल द्वंद्व

फैली सुख- सुगंध।

14

 लिख दिए हैं

तुमने मेरे नाम

सारे सुख- आराम

प्रेम तुम्हारा

परमानंद धाम

प्रिय! तुम्हें प्रणाम।

15

प्रिय तुम्हारी

निश्चल-नेह छाया

मैंने जीवन पाया

आकुलता में

आके कण्ठ लगाया

सोया सुख जगाया।

-0-

शनिवार, 27 नवंबर 2021

1008

 सविता अग्रवाल 'सवि' कैनेडा 

1

रुद्ध कंठ है

वाणी विलुप्त हुई

रीते मन के कोने

कैदी आखर

तुम बिन प्रीतम

ना ही मुझमें प्राण

2

आ जाओ प्रिय!

तुम बिन- बंजर

सिंचित करो प्राण

नीरस लगे

मुझे सारा संसार

तुम जीवन -प्राण

 

कभी मुझसे

नहीं होना विमुख

बनूँ मैं अनुकूल

प्रेम तुम्हारा

श्वांस बसा रहता

नदिया -सा बहता

4

तुमसे मेरे  

जीवन में संगीत

तुम स्वर आलाप

तुम रागिनी

तानपुरा की तान

मीत! गीत के प्राण

5

तुमसे प्रीत

रक्षित -चिरकाल

तुम! सुख समृद्धि

जीवन प्राण

तुम मेरा आधार

ज्योतिर्मय संसार

6

प्रिय बिन मैं

अधूरी रागिनी- सी

टूटी साज़-आवाज़

बेसुर बजी

राग सब मौन हैं

, भरो! स्वर प्राण

7

साजन तुम

घर का दीपक हो

पुंज प्रकाशवान

भरो उजाला

बाती बन मैं जलूँ

अँगना पुलकित।

8

सजला प्रीत

हृदय सिसकती

वंचित बेजान- सी

स्वप्न बिखरे

सौतन बनी हवा

बुझाती आशा दीप

9

लुप्त सलिल

गुमनाम झरने

मँडराते बादल

छलती वायु

भरे, प्रीत में प्राण  

मिले- प्रिय का प्यार।  

-0-

शुक्रवार, 26 नवंबर 2021

1007-बरसी जो सुगन्ध

 सेदोका-  रश्मि विभा त्रिपाठी

1

बरस रहा

सुख-आनन्द-मेह


समृद्ध मेरा गेह

अभिभूत हैं

पा अनमोल नेह

प्राण- मन औ देह।

2

तुम्हारी भुजा

मेरी आसनपाटी

वहीं विश्राम पाती

जब भी थकूँ

तुम्हें गले लगाती

नव प्राण पा जाती।

3

तुम्हारी याद

मधु स्पर्श दे जाती

जिस प्रहर आती

मन-वीणा के

तार छेड़ मुस्काती

प्रेम-रागिनी गाती।

4

तुम्हारी याद

दौड़ तुरत आए

दोनों बाहें फैलाए

दुख-ताप से

पल-पल बचाए

प्राण-मन हर्षाए।

5

कभी होती है

जो छटपटाहट

सीलें नयन- पट,

तुमने द्वारे

धरा दुआ का घट

पियूँ,पाऊँ जीवट।

6

तुम्हें न प्यारा

प्रिये कुछ भी अन्य

तुम भावनाजन्य,

तुम्हारा प्रेम

अलौकिक, अनन्य

तुम्हें पा मैं हूँ धन्य।

7

खिला देते हो

कामना के कुसुम

होऊँ जो गुमसुम

प्रेम-विहग

मेरे मन के द्रुम

चहचहाते तुम।

8

आकुलता में

भर देता साहस

बाहुपाश में कस

जिला लेता है

प्रणय सोम-रस

पा जाऊँ सरबस।

9

कट गए हैं

सारे ही दुख- द्वंद्व

झूम उठी सानंद

मन-आँगन

प्रेम की मंद-मंद

बरसी जो सुगन्ध।

10

मैं तपस्विनी

प्रियवर का ध्यान

मेरा पूजा-विधान

मन श्रद्धा से

गाए प्रणय-गान

मोद मनाएँ प्राण।

11

प्रिये तुम्हारा

प्रेम और विश्वास

मेरे जीने की आस,

मेरे मन में

करते तुम वास

आसक्त श्वास-श्वास।

-0-

बुधवार, 17 नवंबर 2021

1006-स्मृति तुम्हारी

 सविता अग्रवाल 'सवि'  (कैनेडा)

1

नम पलकें

तन्हा हुई ज़िंदगी

जुगनू बने मित्र

स्मृति तुम्हारी

मछली- सी तड़पी

मिलन को तरसी 

2

मरु- हृदय

उगी नागफनियाँ

निहारती वीराने

याद- लड़ियाँ 

नयन झरे पानी

तस्वीर ही निशानी 

3

याद तुम्हारी

सताए हर वक्त

भँवर में चलती

चकरी बनी

तट पाने की आस

हिय- मचल जाती 

4

गुज़रे दिन

किताब में गुलाब

मुस्कुराहट भरा

निरखे मुझे

देख, प्रेमी युगल

यादों की वीणा बजे ।

5

रौशनी वहाँ

प्रिय- संग है जहाँ

फूटी प्रेम- गगरी

हुआ विछोह

स्मृतियाँ बुहारतीं

मन आँगनद्वार 

6

रंगों में रँगा

स्मरण- कैनवास

चित्र उकेरेंहाथ

दर्द दर्शाते

कैसी है सल्तनत?

तुम, आकृति पाते 

7

यादें सताएँ

मिलन- तार सजे

स्पंदित हिय- वीणा

गूँजती ध्वनि

प्रिय बनोआलाप

सरगम मैं बनूँ 

8

याद तुम्हारी

सूखा मरु सींचती

महका रही मन

पाने की हूक

प्रेम बादल बन

आस-प्यास बुझाती  

9

सुधि-तिनके

घरौंदे बना रहे

पंछी बन उड़ते

नभ में जाते

हिय-डाल पे बैठ

फुदकते रहते ।

      -0-

रविवार, 14 नवंबर 2021

1005-धूप का इंतज़ार

 

धूप का इंतज़ार

सविता अग्रवाल 'सवि'

1

धूप ने ओढ़ी

बादल- चुनरिया

बैठा कुहासा

धूप का इंतज़ार

भरो, प्राण संचार।

2

प्रातः की बेला

धूप का इंतज़ार

खोई किरणें

मुरझाई आशाएँ

अवसादों का घेरा।

3

खिड़की खुली

सूरज नदारद

फीका आकाश

धूप का इंतज़ार

रवि! लाओ बहार।

4

भोर गुलाबी

बदली भरा नभ

मौन किरण

कलम कर रही

धूप का इंतज़ार।

5

सहमी घास

ओढ़–ओस चदरी

करती रही

धूप का इंतज़ार

रात भर न सोई।

6

हिय में तम

हवा संग में उड़े

प्रातः के रंग

धूमिल मन करे

धूप का इंतज़ार।

7

प्रातः उदास

दुबके जीव-जन्तु

करते आस

बाहर है न गर्मी

धूप का इंतज़ार।

8

धूसर नभ

कलियाँ मुरझाईं

निशा भी रोई

पनीले पात करें

धूप का इंतज़ार।

9

तकते नैना

आकाश का अँगना

छुपी लालिमा

फैल रहा कुहासा

धूप का इंतज़ार।

10

नभ के काँधे

दुशाला ओढ़े रवि

धरा को झाँके

धूप का इंतज़ार

मानस मन जागे।

-0-

कैनेडा, दूरभाषः (905) 671 8707