सविता अग्रवाल 'सवि' कैनेडा
1
रुद्ध कंठ है
वाणी विलुप्त हुई
रीते मन के कोने
कैदी आखर
तुम बिन प्रीतम
ना ही मुझमें प्राण।
2
आ जाओ प्रिय!
तुम बिन- बंजर
सिंचित करो प्राण
नीरस लगे
मुझे सारा संसार
तुम जीवन -प्राण।
३
कभी मुझसे
नहीं होना विमुख
बनूँ मैं अनुकूल
प्रेम तुम्हारा
श्वांस बसा रहता
नदिया -सा बहता।
4
तुमसे मेरे
जीवन में संगीत
तुम स्वर आलाप
तुम रागिनी
तानपुरा की तान
मीत! गीत के प्राण।
5
तुमसे प्रीत
रक्षित -चिरकाल
तुम! सुख समृद्धि
जीवन प्राण
तुम मेरा आधार
ज्योतिर्मय संसार।
6
प्रिय बिन मैं
अधूरी रागिनी- सी
टूटी साज़-आवाज़
बेसुर बजी
राग सब मौन हैं
आ, भरो!
स्वर प्राण।
7
साजन तुम
घर का दीपक हो
पुंज
प्रकाशवान
भरो उजाला
बाती बन मैं जलूँ
अँगना पुलकित।
8
सजला प्रीत
हृदय
सिसकती
वंचित बेजान- सी
स्वप्न बिखरे
सौतन बनी हवा
बुझाती आशा दीप
9
लुप्त सलिल
गुमनाम झरने
मँडराते
बादल
छलती वायु
भरे, प्रीत
में प्राण
मिले- प्रिय का प्यार।
-0-
12 टिप्पणियां:
अत्यंत सुन्दर सृजन.... 🌹
प्रेम भाव से सिक्त सुन्दर सेदोका।
हार्दिक बधाई आदरणीया।
सादर 🙏🏻
सुन्दर
आनिमा जी, रश्मि जी और सुशील कुमार जी आप सब का हृदय तल से आभार।
अति सुंदर सेदोका...हार्दिक बधाई सविता जी।
मनमोहक सेदोका, एक से बढ़कर एक!हार्दिक बधाई सविता जी!
कृष्णा जी और प्रिय प्रीति का हार्दिक धन्यवाद। आप सभी की प्रतिक्रिया से मनोबल बढ़ता है।
अति सुन्दर।
डॉक्टर सुरंगमा जी अनेक धन्यवाद।
बहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन, हार्दिक बधाई।
-परमजीत कौर'रीत'
परमजीत जी आपका हृदय से धन्यवाद।
शृंगार के वियोग पक्ष की मार्मिक अभिव्यक्ति !
बहुत ही भावपूर्ण, सुंदर सेदोका। बधाई सवि जी
एक टिप्पणी भेजें