कृष्णा वर्मा
सहमा समाँ
कौन किसे बचाए
लिखने लगीं
आँधियों की भूमिका
सिरफिरी हवाएँ।
2
सूना है तट
पसरा है सन्नाटा
आए न हंस
उन्मन उदास है
भीगा-भीगा मौसम।
3
एक भी पल
मिला न चाहत का
आहत उर
सिलता रहा ज़ख़्म
प्यासा भटका मन।
4
जले अंतस
पटक रहीं सिर
दीवारों संग
सीके होंठ व्यथाएँ
धीरज टूटा जाए।
5
रह चौकन्ना
मकड़ी के जालों से
हुई जो चूक
गहरा उलझेगा
बेभाव जंजालों में।
6
फूटा है स्त्रोत
आँसुओं का आँखों से
आहत हुआ
मन भीतर कहीं
टूटा कुछ कांच सा।
7
अन्दर आग
ऊपर हिम नदी
बाहर हँसें
भीतर गूँगे ग़म
कौन करेगा कम।
8
करते रहे
धागे सदा तमाशे
पोरों पे बंध
कठपुतलियों को
इशारों पे नचाते।
9
धूर्त -कपटी
लोग हैं बेईमान
आँख कान को
खुल्ला रख जो चाहे
असली पहचान।
10
सब संदेही
कोई न प्रतिबद्ध
तुझसे बड़ा
मेरा क़द की होड़
लगा रहे हैं दौड़।
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6 टिप्पणियां:
करते रहे
धागे सदा तमाशे
पोरों पे बंध
कठपुतलियों को
इशारों पे नचाते। ... बहुत सुंदर,सभी ताँका बेहतरीन।हार्दिक बधाई कृष्णा जी
अन्दर आग
ऊपर हिम नदी
बाहर हँसें
भीतर गूँगे ग़म
कौन करेगा कम।
बहुत ही सुन्दर ताँका।
सभी ताँका बहुत ही भावपूर्ण।
हार्दिक बधाई आदरणीया दीदी को।
सादर 🙏🏻
सभी ताँका बेहतरीन, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
क्या कहें ....बेहतरीन ... सभी ताँका सुन्दर
एक से बढ़कर एक .....
हार्दिक बधाइयाँ कृष्णा जी
सब संदेही
कोई न प्रतिबद्ध
तुझसे बड़ा
मेरा क़द की होड़
लगा रहे हैं दौड़।
सभी ताँका जीवन - दर्शन से जुड़े । हार्दिक बधाई कृष्णा जी संजीदा ताँका - सृजन हेतु ।
उम्दा ताँका रचे हैं कृष्णा जी , बधाई।
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