भीकम सिंह
1
किसान झूमें
धान पर लगी ज्यों
बर्षा की झड़ी
खेतों के गात भरे
सूद की आँख पड़ी ।
2
ओस की बूँदें
ढुलकी ज्यों धान पे
खिल उठा त्यों
समूचा खलिहान
खेतों में आई जान ।
3
सरसों रँगे
तितलियों के पर
गहरे पीले
ओस करके गीले
कर देती रँगीले ।
4
खेत तो बोते
धैर्य को रखकर
रात -बे -रात
मंडी में बिक जाता
वो फसलों के साथ
।
5
निराशा जैसी
गाँव में फैली रात
चन्द्रमा जगा
जुगनुओं के संग
करता रतजगा
।
6
मान का पान
गाँवों में होता सुना
सिरमौर-सा
दौड़े प्रेम- शिरा में
वो भाव विभोर- सा ।
7
ग्राम देवता
विश्वास
का दीपक
खेतों
में बला
गाँवों की उलझन
सुलझा कर
बढ़ा ।
8
भर कटोरे
गाँव ने
पी -ली लस्सी
मुँह निहोरे
खेतों के पैर छूने
चल पड़ा सवेरे
।
9
गाँव के लोग
उनके खेत-बैल
और फावड़े
छिनी पाँव तले की
बिछाकर पाँवड़े
।
10
पानी की धार
अँजुरी के सम्पुट
भर -भरके
खेत प्यास बुझाते
जब हल चलाते
।
-0-
9 टिप्पणियां:
एक से बढ़कर एक सुन्दर ताँका।
गाँव,खेत, खलिहान का दृश्य आँखों में जीवंत हो उठा।
हार्दिक बधाई आदरणीय।
सादर 🙏🏻
सुन्दर
वाह,वाह,एक से बढ़कर एक ,सुंदर ताँका।हार्दिक बधाई डॉ. भीकम सिंह जी।
ग्राम्य जीवन के इस कुशल चितेरे की सभी रचनाएँ उत्कृष्ट होती ही हैं-बधाई।
आपकी रचनाओं में एक नया दृश्य सदैव ही मिल जाता है।
अच्छे ताँका-शुभकामनाएँ।
सभी ताँका पढ़कर मन प्रसन्न हो गया. गाँव की स्मृतियाँ ताज़ी हो गईं. सभी ताँका बहुत सुन्दर. डॉ. भीकम सिंह जी को हार्दिक बधाई.
सभी ताँका बहुत उम्दा... हार्दिक बधाई भीकम सिंह जी।
मेरे ताँका प्रकाशित करने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद और आप सभी का हार्दिक आभार ।
खेत-खलिहान की दृश्यावली को जीवंत करते सजीले ताँका । बधाई भीकम सिंह जी ।
गाँव के नैसर्गिक जीवन के अद्भुत ताँका रचनाओं के लिए भीकम सिंह जी को हार्दिक बधाई ।
विभा रश्मि
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