शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

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 1-मंजूषा मन

1.


शीतल भोर
,

लिहाफ सी किरणें

सूरज लाया

विहग वृंद जागे,

मनु काम को भागे।

2.

भोर जगाए,

खग मृग भी जागे

नव चेतना

दौड़ी नस नस में,

दुनिया हो बस में।

-0-

रिश्ते

डॉ. जेन्नी शबनम 

1.


रिश्ते हैं फूल

भौतिकता ने छीने

रिश्तों के रंग-गंध

मुरझा गए

नहीं कोई उपाय

कैसे लौटे सुगंध।

2.

रिश्ते हैं चाँद

समय है बादल

ओट में जाके छुपा

समय स्थिर

ओझल हुए रिश्ते 

अमावस पसरी

3.

पावस रिश्ते

वक़्त ने किया छल

छिन्न-भिन्न हो गए

मिटी है आस

मन का प्रदूषण

तिल-तिल के मारे।

4.

कुंठित मन

रिश्तों हो गए ध्वस्त

धीरे-धीरे अभ्यस्त

वापसी कैसे?

जेठ की धूप जैसे

कठोर जिद्दी मन।

5.

रिश्तों का त्ल

रक्त बिखरा पड़ा

अपने ही क़ातिल,

रोते ही रहे

कैसे दे पाते सज़ा

अपराधी अपने।

6.

टोना-टोटका

किसी ने तो है किया

मृतप्राय है रिश्ता,

ओझा भी हारा

झाड़-फूँक है व्यर्थ

हम हैं असमर्थ।

7.

मन आहत

वक़्त का काला जादू

रिश्ते बने बोझिल,

वक़्त मिटाए 

नज़र का डिठौना

औघड़ निरुपाए।

8.

बावरा मन

रिश्तों की बाट जोहे

दे करके दुहाई,

आस का पंछी

आज भी है जीवित

शायद प्राण लौतें

9.

रिश्ते पखेरू,

उड़के चले गए

दाना-पानी न मिला

खो गए रिश्ते,

चुगने नहीं आते

कितना भी बुलाओ।

10.

जिलाके रखो

मन भर दुलारो

कभी खोए न रिश्ते

मर जो गए

कितने भी जतन

लौटते नहीं रिश्ते।

11.

वाणी का तीर

मन हुआ छलनी

घायल हुए रिश्ते

मन की पीर

कोई कहे किससे 

दिल गया है छील।

12.

दुर्गम रास्ते

चल सको अगर

सँभलकर चलो

रिश्ते सँभालो,

पाँव छिले, लगा लो  

रिश्तों के मलहम।

13.

घायल रिश्ता 

लहूलुहान पड़ा

ज्यों पर कटा पंछी, 

छटपटाए 

पर उड़ न पाए 

आजीवन तड़पे।

14.

अजब दौर

बँट गई दीवारें

ज्यों रिश्ते हों कटारें,

भेज न पाएँ

मन की पीर-पाती

बंद हो ग द्वारे।   

15.

रिश्ते दरके

रिस-रिसके बहे

नस-नस के आँसू,

मन घायल  

संवेदना है मौन 

समझे भला कौन?

16.

बादल रिश्ते 

जमकर बरसे 

प्रेम के फूल खिले

मन भँवरा  

प्रेम की फूलवारी  

सुगंध से अघा  

17.

मौसम स्तब्ध

रिश्ते की मौत हुई

आसमाँ भी रो पड़ा,

नज़र लगी

हँसी भी रूठ गईं

मातम है पसरा।

18.

खिलते रिश्ते

साथ जो हैं चलते

खनकती है हँसी

साथ जो रहें

कोई कभी न तन्हा

आए आँधी या तूफाँ।

19.

गाछ-से रिश्ते 

कभी तो हरियाए 

कभी तो मुरझाए 

प्रीत- बरखा

बरसते जो रहे  

गाछ उन्मुक्त जिए

20.

रिश्तों की डोर

कभी मत तू छोड़  

रख मुट्ठी में जोड़ 

हाथ से छूटे 

कटी गुड्डी-से रिश्ते   

साबुत नहीं मिले।  

-0-