गुरुवार, 30 अगस्त 2018

829-चोका- सेदोका


1-जानते तो हो
कृष्णा वर्मा

जानते तो हो
नहीं पसंद मुझे
सवार होना
पाल लगी नाव में,
गवारा नहीं
मुझे हवा की मर्ज़ी
मान  चलना
झेलूँ आवारगियाँ
मैं क्यों उसकी
भरोसेमंद हुईं
कब हवाएँ
बदलकर रुख़
गिरा दें पाल
छोड़ दे कहीं कश्ती
वो मझधार
जानती हूँ-तुम ना
थामोगे पतवार।
-0-
2-कृष्णा वर्मा
1
ग़म ख़ौफ न
बोझ होती ज़िंदगी
रहती खिली-खिली
होता सुर्ख़ुरू
जीना, समझते जो
मन इक-दूजे का।
2
तुम क्या जानो
जीवन रंगमंच
मैं ऊँचा कलाकार
छिपा लेता हूँ
कैसे अपनी पीड़ा
हँसी की लकीरों में।
3
जलाए मन
पल-पल यह क्यों
तेरी सोच की आग
कैसे बताऊँ
है पाक मन मेरा
तेरा ही मन मैला ।
4
घुलता रहूँ
कैसे दिखलाऊँ मैं
अंतर्मन अपना
शंका मिटाता
सीना चीर दिखाता
होता राम भक्त सा।
-0-

सोमवार, 27 अगस्त 2018

828


डॉ.सुरंगमा यादव

क्या बन जाऊँ!
जो पी के मन भाऊँ 
सारे सपने
अपने बिसराऊँ 
स्वप्न पिया के
मैं नयन बसाऊँ 
मौन सुमन
सुरभित होकर
कंठ तिहारे
मैं लग इठलाऊँ 
कुहू -सा स्वर
पिया मन आँगन 
कूज सुनाऊँ 
पीर-वेदना सारी
सह मुस्काऊँ 
बनूँ प्रीत चादरा 
पिया के अंग
लग के शरमाऊँ 
और कभी   मैं 
जो जल बन जाऊँ 
अपनी सब
पहचान भुलाऊँ 
रंग उन्हीं के
फिर रँगती जाऊँ 
योगी -सा मन
हो जाए यदि मेरा
सम शीतल
मान -अपमान को
सहती जाऊँ 
जो ऐसी बन जाऊँ 
तब शायद 
पिया के मन भाऊँ 
प्रेम बूँद पा जाऊँ 
-०-

बुधवार, 22 अगस्त 2018

827


1-डॉ. हरदीप कौर संधु






















2-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' 

1.अब जाल समेटो-

बहुत हुआ
अब जाल समेटो
कमी वक़्त की
भुजपाश लपेटो
कल न होंगे
इतना तुम जानों
यही सत्य है
हे प्रियवर ! मानो
सफर छोटा
पर अच्छा ही बीता
कर न पाए
हम मन का चीता
बन्धन न था
यह इस जग का
फिर भी  इसे
भरपूर निभाया
पात्र था छोटा
पर अधिक  पाया
जन्मेंगे हम
फिर तुम्हें मिलेंगे
तेरे आँगन
निश्चय ही खिलेंगे
मन में छुप
हम बात करेंगे
कोई भी मारे
अमर भाव सृष्टि
हम नहीं मरेंगे
.
-०-
2-चन्दन वन

चन्दन वन
अपनों ने जलाया
बचे थे ठूँठ
थोड़ी सी खुशबू
किसी कोने में
आखिरी साँस लेती,
कोई आ गया
मन व  प्राणों पर
खुशबू बन
प्यार बन छा गया
जो कुछ बचा
वह उसी का रचा
उसी का रूप
सर्दी की वह धूप
मेरी जीवन  आशा।
-०-

बुधवार, 15 अगस्त 2018

826


मन है ख़ाली-ख़ाली - अनिता ललित
1.
मन है ख़ाली-ख़ाली
पीकर दर्द सभी
रीती आखर-प्याली!
2.
सपने कुछ यूँ टूटे
अबकी सावन में
हैं ज़ख्म सभी फूटे!
3.
तूफ़ानों ने घेरा
पीर कहूँ  कैसे
माझी ने मुँह फेरा!
4.
दिल में तुम ही तुम थे
क्यों फिर चीर दिया
तुम बरसों से गुम थे!
5.
छाई है धूप कड़ी
सदियों की दूरी
है अपने बीच खड़ी
6.
तेरे-मेरे दिल के
बीच बिछे शोले
घावों को छिल-छिलके
7.
आँसू सब पी जाती
थाम अगर लेते
कुछ साँसें जी जाती!
8.
यों हाथ छुड़ाकर के
कौन गली भटके
तुम आज  भुलाकर के!
9.
वादा तोड़ न जाना
अब जो आए हो
मुझको छोड़ न जाना!
10.
संसार भुला बैठी
तुम पर आस टिकी
तुमको ही रुला बैठी
-0-अनिता ललित ,1/16 विवेक खंड ,गोमतीनगर ,लखनऊ-226010  

शुक्रवार, 10 अगस्त 2018

825


1-डॉ0 सुरंगमा यादव
1-बीत ही जाती रात

रात सुहानी
चाँदनी में मुखड़ा
धोकर आई
सितारों की चुनरी
ओढ़, उतरी
मुख पर है सजी
चंदा की बेंदी
खुशियाँ  हैं  बिखरीं
चारों  ही ओर
सब लगे मगन
धरा-गगन
साकार हुए सब
मन के स्वप्न
अधिक न ठहरा
स्वर्णिम काल
खोई  चाँदनी रात
घिरा अँधेरा
रूप-शृंगार सब
चित्र; रमेश गौतम
गया बिखर
गुम हो गए सारे
उजले तारे
पथ को आलोकित
करने वाले
पर न रुकी रात।
गहरा तम
या फैला हो उजास
कुछ भी मिले
करके आत्मसात्
बीत ही जाती रात
-०-
2-पिया घर आ

घिरी घटाएँ
मनभावन बरखा
टूट न रहीं
सावन की झड़ियाँ
मन बेचैन
काटूँ कैसे घड़ियाँ
बूँद-बूँद से
मैं करूँ गुजारिश-
पिया के पास
जा करे सिफारिश
पिया घर आ
ले पवन झकोरे
डोले मनवा
सपनों का पलना
कैसे  मैं झूलूँ
पिया मन आँगन
बरसो मेघ
उनका भी अन्तस्
व्यग्र हो उठे
हो मधुर मिलन
घर आयें सजन।
-0-
3- आँसू के मोती

गहरी नींद
धरा माता की गोद
सोऊँ निश्चिन्त
भूलूँ सब क्रीड़ाएँ
आँसू पीड़ाएँ
तारों में छिपकर
देखूँ जग को
नभ के आर- पार
करूँ विहार
इन्द्रधनुषी रंग
करूँ रंगीन
सभी अधूरे स्वप्न
आसूँ के मोती
जग रहा टाँकता
नारी के आँचल में
-0-
डॉ0 सुरंगमा यादव,असि0 प्रो0 हिन्दी,महामाया राजकीय महाविद्यालय महोना , लखन
-०-

2-पूर्वा शर्मा
1
मेरी सब  साँसों में
तू ही बसता है
मेरी इन आँखों में ।
2
बूँदें करती बातें
कितनी प्यारी थी
वो फुरसत की रातें ।
3
बादल घिर आते हैं
प्यास बुझाते हैं
हरियाली लाते हैं ।
4
फूलों के खिलने से
सब हैं झूम रहे
बूँदों के मिलने से ।
5
पतझड़ की शाम रही
तेरी वे  बाँहें
मुझको थाम रही।
6
कोयल क्या कहती है?
साजन हैं आए
अब चुप ना रहती है ।
7
कितना तड़पाते हो
ख़्वाबों में आके
हर रोज़ रुलाते हो ।
8
ये मन भी बहक रहा 
तन के तारों में
बस तू ही महक रहा
9
फूलों में कलियों में
तुमको पाया है
जीवन की गलियों में ।

रविवार, 5 अगस्त 2018

824-शाश्वत शिलालेख


शाश्वत  शिलालेख- रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु '
1
शिला थी कभी
कितने आए-गए
आँधी -तूफ़ान
टकराकर थके
चूर  हो गए
कुछ न लिख पाए
बारिश आई
धोकर निकल गई
धूप बरसी
पिंघला नहीं सकी
शीत-जड़ता
पराजित हो गई।
आ गया कोई
पथिक चुपचाप
शिला को चूमा
अंकित कर दिए
मधु अधर,
कोमल कराग्र से
छुअन लिखी;
करतल की छाप
उभरी ,खिली
अनुराग दृष्टि से
जड़ शिला को
नई ज़िन्दगी मिली

पथिक चौंका-
यह क्या ज़ादू हुआ 
अमृत झरा
द्वि अधरों -करों से
केवल छुआ !
शिला पर चित्रित
अधर -छाप
हृदय  के तल से
हृदय जुड़ा
जीवन्त हुई शिला
प्राण उमड़े
बाहें उग आईं
जुड़े दो प्राण
नेह में बाँध लिया
प्रिय पथिक !
आएँगी आँधियाँ भी
मेघ-विस्फोट
प्रलय मचाएगा
काँपेगी  धरा
न तो टूटेगी शिला
मिटेगा नहीं
लिखा जो शिलालेख
सामान्य जैसे
अधरों ने , करों ने।
क्योंकि छुपा है
विराट  रूप प्रेम
रोम -रोम में-
अधर -छुअन में
करों के-स्पन्दन में। 
-0-( 05-08-2018)