शुक्रवार, 28 अप्रैल 2023

1121

  प्रीति अग्रवाल

 1-पुष्पांजलि


रहोगे मौन
आखिर कब तक
यूँ हीं अकेले
क्यों नहीं कह देते
मन के भाव
जीवन अनमोल
बीत रहा है
घट- घट घटता
रीत रहा है
डरते हो शायद
प्रेम प्रस्ताव
सम्भव अस्वीकार
कुछ न सोचो
नयन- सरोवर
झाँको, उतरो
जहाँ प्रतीक्षारत है
पुष्पांजलि प्रेम की!!
-0-

2- तपिश

राग है छेड़ा
बरखा की बूँदों ने
जाने ये कैसा
जज़्ब कर रहा है
तन ये मेरा
उसकी शीतलता
पा भी रहा है
शायद वो राहत
किन्तु मन है
अब भी झुलसता
अंगारों बीच
बाहरी शीतलता
बींध न पाए
किस विधि पहुँचे
टोह न पाए
समाधान ढूँढता
मन चाहता
आजीवन झरती
प्रेम फुहार
हौले -हौले बूँद की
टिप-टिप -सी
जो सींचे, तुष्ट करे
अंतर्मन तपिश!!
-0-

रविवार, 16 अप्रैल 2023

1120

 अंजु दुआ जैमिनी

1

कलम जगी

सैर पर निकली

भाव समेटे

कागज़ को चूमती

कविता उग आई।


2

नाचती नदी

झूमते पेड़- पौधे

गाता सागर

आदमी आ धमका

जेबों में भर गया।

3

बीमारी घेरे

अपने भी पराए

स्याह सवेरे

सेहत की दौलत

बचाकर रखना।

4

बेटियाँ आईं

माँ की सालगिरह

ममता भीगी

बचपन की बातें

कोने- कोने से झाँकें।

5

बादल- बाहें

बारिश जो फिसली

मोर मुस्काया

सूरज धुंधलाया

खेत खिलखिलाया।

-0-

शुक्रवार, 7 अप्रैल 2023

1119

 चोका- रश्मि विभा त्रिपाठी


चली गई थीं
मुझसे बिना मिले
सालों पहले
तबसे आज तक
हर राह पे
तुम्हारी तलाश में
भटककर
मेरे ये पाँव छिले
ये भी सच है
तुमने पुकारा था
आख़िरी वक़्त
बेचैन होकरके
मेरा ही नाम
वो आख़िरी सलाम
करना चाहा
तो भी न कराहा
किसी का दिल
सुना था सबने ही
मगर मुझे
ख़बर तक न दी
दूर देश में
मेरी दुनिया लुटी
रूह तड़पी
साँस सीने में घुटी
करूँगी गिला
मरते दम तक
उन बेदर्द
पत्थर दिलों से मैं
पर क्या कहूँ
उन कातिलों से मैं
तुम आस्माँ से
देख तो रही हो ना?
आज देख लो
वे ही कहते मुझे
धमकाकर
कि मेरा हक दिला
छोड़ गई हो
तुम अपने हिस्से
मायके में जो
मकान दोमंजिला
ओ मेरी जान!
तुम चुप रही हो
उमर भर
पीकरके जहर
उनका दिया
सारा जीवन जिया
बनके मीरा
शक्ल तुम्हारी काली
देखी सबने
तुम्हारा मन- हीरा
किसने देखा?
मुझे बताओ तुम
ससुराल में
किसी के प्यार ने क्या
सींचा पल को
तुम्हारा मन खिला?
चुभाते रहे
पल- पल काँटे ही
कभी तुम्हारे
उन जख़्मों को सिला?
कैसे तुम्हारी
आँतें बाहर आईं?
अल्सर था वो?
जिस- जिस सीने में
दिल था, वह
तुम्हें देखके हिला
बोलो सौंप दूँ
तुम्हारी ये दौलत
उन्हें, जिन्होंने
मार दिया तुमको
बेवक्त में ही
तुम्हें  दी थोड़ी भी
जीने की मोहलत!