प्रीति अग्रवाल
रहोगे मौन
आखिर कब तक
यूँ हीं अकेले
क्यों नहीं कह देते
मन के भाव
जीवन अनमोल
बीत रहा है
घट- घट घटता
रीत रहा है
डरते हो शायद
प्रेम प्रस्ताव
सम्भव अस्वीकार
कुछ न सोचो
नयन- सरोवर
झाँको, उतरो
जहाँ प्रतीक्षारत है
पुष्पांजलि प्रेम की!!
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2- तपिश
राग है छेड़ा
बरखा की बूँदों ने
जाने ये कैसा
जज़्ब कर रहा है
तन ये मेरा
उसकी शीतलता
पा भी रहा है
शायद वो राहत
किन्तु मन है
अब भी झुलसता
अंगारों बीच
बाहरी शीतलता
बींध न पाए
किस विधि पहुँचे
टोह न पाए
समाधान ढूँढता
मन चाहता
आजीवन झरती
प्रेम फुहार
हौले -हौले बूँद की
टिप-टिप -सी
जो सींचे, तुष्ट करे
अंतर्मन तपिश!!
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