प्रीति अग्रवाल
रहोगे मौन
आखिर कब तक
यूँ हीं अकेले
क्यों नहीं कह देते
मन के भाव
जीवन अनमोल
बीत रहा है
घट- घट घटता
रीत रहा है
डरते हो शायद
प्रेम प्रस्ताव
सम्भव अस्वीकार
कुछ न सोचो
नयन- सरोवर
झाँको, उतरो
जहाँ प्रतीक्षारत है
पुष्पांजलि प्रेम की!!
-0-
2- तपिश
राग है छेड़ा
बरखा की बूँदों ने
जाने ये कैसा
जज़्ब कर रहा है
तन ये मेरा
उसकी शीतलता
पा भी रहा है
शायद वो राहत
किन्तु मन है
अब भी झुलसता
अंगारों बीच
बाहरी शीतलता
बींध न पाए
किस विधि पहुँचे
टोह न पाए
समाधान ढूँढता
मन चाहता
आजीवन झरती
प्रेम फुहार
हौले -हौले बूँद की
टिप-टिप -सी
जो सींचे, तुष्ट करे
अंतर्मन तपिश!!
-0-
12 टिप्पणियां:
मनमोहक चोका। हार्दिक बधाई सुदर्शन रत्नाकर
बहुत ही सराहनीय चोका.... बधाइयाँ सुदर्शन जी
बहुत उम्दा चोका...हार्दिक बधाई प्रीति!
बहुत सुंदर, बधाई प्रीति जी।
बहुत ही खूबसूरत चोका, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
पत्रिका में स्थान देने के लिए आदरणीय काम्बोज भाई साहब का हार्दिक आभार!
भीकम सिंह जी, सुरँगमा जी, कृष्णा जी, अर्चना जी और सुदर्शन दी, आपको चोका पसन्द आए, मेरा लिखना सार्थक हुआ। हार्दिक धन्यवाद!
बहुत ख़ूबसूरत चोका रचे हैं प्रीति। हार्दिक बधाई। सविता अग्रवाल “ सवि”
अंतस के मनोभावों और उन पर पड़ी संकोच के परदों को हटाने की सरस् अभिव्यक्ति।दोनो चोका भावपूर्ण।बधाई प्रीति जी।
वाह्ह!!अत्यंत भावपूर्ण सृजन 🌹🙏
दोनों चोका बहुत ही भावपूर्ण
हार्दिक बधाई प्रीति जी
बहुत सुन्दर चोका, हार्दिक शुभकामनाएँ
गहन अनुभूति और सुंदर शिल्प से सजे उम्दा चोके। बधाई
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