रविवार, 27 जुलाई 2014

प्रेम का उपहार



        अनिता ललित
गाडी अपनी रफ़्तार से दौड़ी जा रही थी और मेरे ख़याल उससे भी तेज़। रह-रह कर माँ का चेहरा आँखों के आगे आ जाता था। भैया का फ़ोन आया था , माँ की तबीयत ठीक नहीं थी। दवा तो चल रही थी , दुआओं की ज़रूरत भी बहुत थी।  तब से मेरे हाथ जो दुआ के लिए उठे तो उठे ही रहे।
                     जब से मैंने होश सँभाला है , माँ को हमेशा व्यस्त ही देखा है। कभी खाली बैठे नहीं देखा।  या तो रसोई में कुछ पकाते, या घर की सफ़ाई , या बाज़ार से अकेले घर-गृहस्थी का सामान, हम सभी की आवश्यकता का सामान लाते और देर रात तक पापा  इंतज़ार करते हुए सिलाई-बुनाई-कढ़ाई करते हुए ही देखा । कभी उन्हें किसी से शिकायत करते नहीं देखा। जिस तरह माँ पापा का इंतज़ार करती थी उस तरह अगर मुझे करना पड़ता तो शायद मेरा घर युद्ध का मैदान बन गया होता। मगर माँ के माथे पर कभी शिकन तक नहीं देखी। माँ ने कभी भी अपने किसी भी कर्तव्य से मुँह नहीं मोड़ा , बल्कि कई बार लोगों ने उन्हें उनके अधिकारों से वंचित किया गया , मगर उन्होंने कभी उसकी भी शिक़ायत नहीं की। मैंने उन्हें सदैव ईश्वर से 'संतोष धन' माँगते हुए ही देखा। उन्हें सदा यही गुनगुनाते हुए देखा 'बहुत दिया, देने वाले ने तुझको, आँचल ही न समाये तो क्या कीजे!' उन्हें कभी अस्वस्थ होकर बिस्तर पर पड़े भी नहीं देखा। अगर कभी उनको बुखार भी चढ़ा तो वे खाना-पीना तैयार करके, मेज़ लगाकर ही लेटती थीं। मुझे, भैया या पापा को कोई तक़लीफ़ हो उन्हें ये क़तई ग़वारा न था। यही नहीं, हमारी कोई भी, कैसी भी समस्या क्यों न हो, उसका हल माँ के पास होता था। हमारी हर मुसीबत के आगे माँ खड़ी होती थी, हम पर आँच भी न आने देती थी।
              यूँ कहिये, तो माँ हमारे घर की खुशियों की चाभी थीं ! मेरे लिए तो आज भी हैं ! २७ जुलाई माँ का जन्मदिवस है। आज के दिन मैं माँ के पास रहना चाहती हूँ, उनके होठों की मुस्कान बनना चाहती हूँ, उनकी आँखों की चमक और दिल का सुकून बनना चाहती हूँ।
           माँ की सबसे बड़ी शक्ति उनकी इच्छाशक्ति थी जो आज भी क़ायम है। उन्होंने बड़े से बड़ा काम जो भी उनके जीवन की राह में आया, किया और बहुत ही सधे हुए ढंग से ख़ूबसूरती से किया। उन्होंने कभी हार नहीं मानी।
          उम्र बढ़ने के साथ उन्होंने कई तरह के शारीरिक कष्टों का सामने किया और उन्हें पराजित भी किया। मगर आज जब वे पचहत्तर वर्ष से ज़्यादा की उम्र में, बीमारी से जूझ रहीं हैं, तो कभी-कभी शारीरिक शक्ति जवाब देने पर वे निराश हो उठतीं हैं। जबकि दिल से वह अभी भी अपने आप को सँभाले हुए हैं, हिम्मत और धैर्य का दामन थामे हुए हैं।
                     ईश्वर भी धरती पर अपने इस रूप का सम्मान करता है! आशा है, जैसे वह अब तक हमारी दुआएँ सुनता रहा है...उसी प्रकार इस मुश्किल वक़्त में भी वह हम जैसों की दुआएँ क़ुबूल करेगा और सदा ही करता रहेगा। उससे यही प्रार्थना है कि मेरी माँ को सदैव स्वस्थ, सुखी एवं शांतिमय जीवन से परिपूर्ण रक्खे ~ मेरी माँ की आयु में मेरी आयु भी जोड़ दे।
        माँ तेरा स्नेह
        ईश्वर की महिमा
        जीवन-प्राण।
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        माँ का अस्तित्व
        ईश्वर के प्रेम का
        है उपहार।
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शनिवार, 26 जुलाई 2014

वर्षा -वधूटी



डॉ सुधा गुप्ता
1
दसों दिशाओं
सजी बन्दनवार
सुगन्धि-अभिसार,
वर्षा -वधूटी
आज करके आई
अभिनव शृंगार ।
2
सजी बैठी
नील परिधान में
शोभा अपरम्पार,
दर्पण देख
सुनहली बिन्दिया
लगा ली सुकुमार ।
3
परछन की
प्रकृति सासू-माँ ने
जाती है बलिहार
बच्चों में बाँटे
चाँदी के नए सिक्के
यूँ नज़र उतार ।
4
शुभ प्रवेश
स्वागत ! भूमि-श्रिया!
अल्पना सजी द्वार
खेत झूमते :
तव शुभ चरण
भर देंगे कोठार ।
5
दूर भगा दी
अकाल परछाई
अल-नीनो की मार
हे मनोहरा!
अन्तर्मन से मानें
तुम्हारा उपकार
-0-
[ परछन= ( प्रच्छन्न)बुरी  नज़र या किसी अहितकारी प्रभाव से मुक्त करने के लिए दीपक चारों ओर घुमाकर दूल्हे की आरती करना। ]

गुरुवार, 24 जुलाई 2014

करीब तो आइए



सुभाष लखेड़ा  
1

बेवकूफ़ था

प्रेम माँगता रहा

मैं यहाँ- वहाँ

अब मालूम हुआ

मेरे पास है

प्रेम का वो खजाना

लुटाता रहूँ

जिसे  खुले दिल से

ख़त्म न होगा

ये मेरे जाने तक

या यूँ कहिए

आपके जीने तक

आज से आप

खुशियाँ मनाइए

बस थोड़ा सा

करीब तो आइए

निवेदन है-

आप मुस्कराएँगे

प्रेम गीत गाएँगे   

-0-
विभा रानी श्रीवास्तव
1

नूर की बूँदें

उदासी छीन रही

इक आसरा

तरुणी हुई धरा

अनुर्वरा ना रही ।

-0-


बुधवार, 23 जुलाई 2014

प्रिय सावन में आना



सरस्वती माथुर
1
प्रिय सावन में आना
मेघा बन करके
 मन नभ पर छा जाना l
2
मन बौराया फिरता
 तेरी यादों से
 मन मेरा जब घिरताl
3
क्या बात लगी मन में
लौट के न आ

  फिर से तुम जीवन में l
-0-