गुरुवार, 7 दिसंबर 2023

1154-हँसती हुई नारी

 

डॉ. जेन्नी शबनम


लगती प्यारी
हँसती हुई नारी
घर- संसार
समृद्धि भरमार
रिश्तों की गूँज
पसरी अनुगूँज
चहके घर
सुवासित आँगन
बच्चों का प्यार
पुरुष से सम्मान
पाकरके स्त्री
चहकती रहती,
खिलखिलाती
सम्बन्धों की फ़सल
लहलहाती
नाचती हैं ख़ुशियाँ
प्रेम-बग़िया
फूलती व फलती,
पाकर प्रेम
पाके अपनापन
भर उमंग
करती निछावर
तन व मन
सूरज-सा करती
निश्छल कर्म
स्त्री सदैव बनती
मददगार
अपने या पराए
चाँद -सी बन
ठंडक बरसाती
नहीं सोचती
सिर्फ़ अपने लिए
करती पूर्ण
वह हर कर्तव्य
ममत्व-भरा
नारी है अन्नपूर्णा
बड़ी संयमी
मान-प्यार-दुलार
नारी-मन का सार।
-0-



बुधवार, 22 नवंबर 2023

1153

 प्रेम

भीकम सिंह

1

प्यार में कुछ

टूटके गिरे लम्हें

कुछ ढूह-से

टिके रहे अधूरे

टीस-से भरे -पूरे ।

2

लेकर खड़ा

टूटे वादों के निशाँ

सदी से प्रेम,

अपने ही भीतर

देखें खुरचकर।

3

प्यार से कभी

मन नहीं भरता

अधूरापन

अंतर्लाप करता

ज्यों तहों  में उठता ।

4

दबा-कुचला

प्यार महक उठा

गूँजा  तराना

जब भी कभी खुला

बक्सा कोई पुराना

-0-

शुक्रवार, 17 नवंबर 2023

1152

 भीकम सिंह



1

एक मुस्कान

खेत बिखेरता है

नित्य निर्मल

जो, गाँवों की आँखों में

दिखती पल - पल 

2

कच्चे रस्ते से

उड़कर जाती है

धूल की पर्ती

खुला ऐलान जैसे

स्वच्छता को करती ।

3

घिसे  दाँतों में

गालियों को लेकर

घूमते गाँ

खेत -खलिहानों में

बीज के गोदामों में ।

4

गाँवों में रखे

हल्की - हल्की -सी धूल

हवा तहाके

चौमासे में पहने

बरसात नहाके ।

5

कल आँधी में

बिखर गया खेत

पड़ा रहा ज्यों

बेजान,थका -हारा

खलिहान हमारा ।

6

हर कोण से

खलिहान देखता

मेड़ों तलक 

खेतों से दिखा गाँ

दूर तक फलक ।

 

-0-

गुरुवार, 16 नवंबर 2023

1151

 जन्मदिन (ताँका)

-डॉ. जेन्नी शबनम



1.

उम्र की तीली

धीरे-धीरे सुलगी

कुछ है शेष

कब होगा अशेष

समय ही जानता।

2.

जन्म की तिथि

बताने बढ़ी उम्र

फिर से आई,

उम्र का लेखा-जोखा

क्यों करना है भाई।

3.

खोजती हूँ मैं

अब भी बच्ची हूँ मैं

बाबा व अम्मा,

छोड़ चले गए वे

यादों में जन्मदिन।

4.

ख़ूब मिलता

जन्मदिन जो आता

शुभकामना

आँचल में भरके

सौग़ात है मिलती

5.

मैं अलबेली

जन्मदिन मनाती

भले अकेली

खाकर होती तृप्त

खीर -पूरी -मिठाई।

6.

पिघली ओस

जन्मदिन के दिन

हँसके देती

ठंडक का आशीष

बोली- फूल-सा खिलो।

7.

सूर्य कहता-

बस चलती रहो

कैसा भी पल

हारना न रुकना

सीखो मुझ-सा जीना।

8.

सूरज उगा

भरता उजियारा

मन में मेरे

सन्देश है भेजता

सदा जलो मुझ-सा।

9.

वक्त ने कहा-

उम्र का लेखा-जोखा

मत करना।

जब तक हैं साँसें

जीभरकर जीना।

10.

सुन्दर दिन

आज मेरा जन्मदिन

चहकती मैं,

अनुभव का रंग

मुझे करे रंगीन।

-0-

शनिवार, 11 नवंबर 2023

1150

चहूँ ओर उल्लास (चोका)

 -डॉ. जेन्नी शबनम

 


शहर छीने

गाँव का माटी-घर

मिटती रही

देहरी पर हँसी,

मिट गया है

गाछ का चबूतरा,

जो सुनता था

बच्चों-बूढ़ों की कथा

भोर की बेला,

मिटता गया अब

माटी का दीया

भले आए दीवाली

चारो तरफ़

जगमग बिजली।

कोई न पारे

अँखियों का काजल

कोने में पड़ा

कजरौटा उदास

बाट जोहता

अबकी दीवाली में

कोई तो पारे।

तरसती रहती

गाँव की धूप

कोई न आता पास

सेंकता धूप

न कोई है बनाता

बड़ी-अचार

बाज़ार ने है छीने

देसी मिठास।

विदेशी पकवान

छीने सुगन्ध

खीर-पूरी-मिठाई

बिसरे सब

भूले त्योहारी गंध

फैला मार्केट

केक व चॉकलेट।

नहीं दिखतीं

वह बुढ़िया दादी

सूप मारतीं

दरिद्दर भगातीं,

दुलारी अम्मा

पकवान बनातीं

ओल का चोखा

आलू का है अचार

अहा! क्या स्वाद!

भूले हम संस्कृति

अतीत बनी

पुरानी सब रीति

सारा त्योहार

अब बना व्यापार।

कैसी दीवाली

अपने नहीं पास!

बिसरो दुःख

सजो और सँवरो

दीप जलाओ

मन में भरो आस

चहूँ ओर उल्लास।

-0-

 


गुरुवार, 9 नवंबर 2023

1149

 

सचेन का डर

भीकम सिंह 

 


      यह घना जंगल, नीला - नीला आसमानअनजान अनसुने पक्षियों का कलरव, पाखोला हैंगिंग ब्रिज का कंपन, तुरई की बेल जैसी बेल पर खिलखिलाकर हँसता स्क्वैशतून , महोगनी, ओखर के पेड़, पौधे, अंकुर.....सभी के अपने शब्द, आनन्द, कोलाहल । बस एक टुकड़ा जमीन ही दिखाई दी थी हमें टैंट लगाने के लिए, हम आसमान का रुख देखकर आनन्दित हो उठे। यह हमारा सिक्किम गोचा- ला ट्रैक का पहला कैम्प 'सचेन' है 

   सचेन के ऊपरी छोर पर कंचनजंघा अभ्यारण्य की जानकारी हुई, तो  जंगली जानवरों की आशंका हुई । जंगली जानवरों को भी कोई रोक सका है ? किन्तु ट्रैकर भी हठीले भैंसे की तरह अपने अरमानों को पूरा करने के लिए निरंतर जोखिम उठाते रहते हैं । डरावनी बात आते- आते कई बार अन्दर ही ठहर गई, परन्तु मैं हार नहीं माना । मैंने गाइड से पूछ ही लिया, " यदि रात में टागर आ जा तो ?"

     मेरे चेहरे के डर को देखकर गाइड हँसा, फिर बोला,  "सर ! आपका टैंट टागर की बस्ती से कुछ ही दूरी पर लगा है। टैंट के बाहर खड़े होने से टागर दिख जाता है,परन्तु शरारती नटखट बच्चे की तरह थोड़ा डराकर खुद- बखुद अपने रास्ते चला जाता हैसिक्किम में किसी ने उसे शत्रु नहीं माना ।

रात भर मैं सो नहीं पायाबेशुमार आशंकाए उठती रहीं । कहीं टागर वाकई न आ जा। ठिठुरन भरी हवा से रह रहकर सिहर उठता। शरीर में थकावट से ताकत नहीं बची, चाँद अपनी जगह टिका है, सूर्य कब दिखला देगा, पेड़ काले- काले होकर घिरे खड़े हैं। मैं टैंट में ही बीच बीच में टॉर्च का बटन दबा देता हूँ । तभी बराबर वाले टैंट से बातचीत सुनाई दी,  मैंने टॉर्च स्थायी रूप से बुझा दी। स्लीपिंग बैग से निकलकर संजीव वर्मा ने कहा, ‘‘सवेरा हो गया भाई साहब! "

    थोड़ी देर में चाय आ गई।  चाय की चुस्की लेते हुए मैं बोला,  " सचेन का डर बड़ा था ,हमेशा याद रहेगा ।

                नींद मुकरे 

           जब डर को खोंसे 

                 रात उतरे ।

 

-0-

सोमवार, 6 नवंबर 2023

1148

 शहर के पाँव (चोका)

डॉ. जेन्नी शबनम

 


शहर के पाँव

धीरे-धीरे से चले

चल न सके

पगडंडियों पर

गाड़ी से चले

पहुँच गए गाँव।

दिखा है वहाँ

मज़दूर-किसान

सभी हैं व्यस्त

कर्मों में नियमित

न थके-रुके

कर खेती-किसानी।

शहर सोचे-

अजीब हैं ये लोग

नहीं चाहते

बहुमंज़िला घर

नहीं है चाह

करोड़पति बनें

संतुष्ट बड़े

जीवन से हैं खुश।

धूर्त्त शहर

नौजवानों को चुना

भेजा शहर

चकाचौंध नगर

निगल गया

नौजवानों का तन

हारा है मन

आलीशान मकान

सड़कें पक्की

जगमग हैं रातें

ठौर-ठिकाना

अब कहाँ वे खोजें?

कहाँ रहते?

फुटपाथ है घर

यही ठिकाना

गाँव रहता दुःखी

पीड़ा जानता

पर कहता किसे

बना है गाँव

कंक्रीट का शहर

कंक्रीट रोड

जगमग बिजली।

राह ताकती

गाँव की बूढ़ी आँखें

गुम जवानी

आस से है बुलातीं-

वापस आओ

नहीं चाहिए धन

नहीं चाहिए

कंक्रीट का महल

अपनी मिट्टी

सब ख़त्म हो गई

ख़त्म हो गई

वो पुश्तैनी ज़मीन।

अंततः आया

वह आख़िरी पल

आया जवान

बेचके नौजवानी

गाँव की मिट्टी

लगती अनजानी

घर है सूना

अब न दादा-दादी

न माँ-बाबा

कई पुश्त गुज़रे

नहीं निशानी

लगातार चलते

नहीं थकते

लगातार ढूँढते

फिर से नया गाँव।

-0-