शनिवार, 29 दिसंबर 2012

दर्द -भरी कहानी



-डॉ भावना कुँअर

मासूम परी
जो जीना चाहती थी,
बनी शिकार
वहशी दरिन्दों का
जूझती रही
जिंदगी व मौत से
लड़ती रही,
आखिरी तक
खामोश थी ज़ुबान
कह रही थीं
मासूम वो पलकें
अनकही सी
दर्द -भरी कहानी
छोड़ रहा था
शरीर अब साथ
बुलंद रहा
हौसला जीवन का
बुझ ही गई
जीवन की वो जोत
गूँजने लगी
माँ की भी सिसकियाँ
कुचले देख
नन्हीं परी के पंख ।
सूना हो गया
पिता का वो आँगन
चहकती थी
सोन चिरैया जहाँ।
आँसू से भरी
आँखिया निहारती
सूनी कलाई
कानों में गूँजती हैं
बेबस चीखें
दर्द और पुकार।
चारों तरफ फैला
सहमा हुआ
आँसुओं का सैलाब
कैसी ज़ुदाई,
अपनी जमीं फिर
खून से है नहाई।
-0-

ले जी में हूक



सुशीला शिवराण

जननी, सुता
बहन, बीवी, दोस्त
स्‍नेहमयी तू
बहे बन ममता
नर-तन में
ले कोख में आकार
जब जीवन
जोड़ गर्भनाल से
देती पोषण
पिला छाती का दूध
सींचती तन
छीजती पल-पल
करती पुष्‍ट
एक मर्द की काया
मिटने में ही
आनन्द तूने पाया
हाय दुर्भाग्य !
कैसी ये विडम्बना
मिटती रही
तू पुरुष के हाथों
कभी कोठे पे
बिका है  बचपन
कभी खरीदा
सम्पत्ति की तरह
लूटा-खसोटा
भेड़िए की तरह
नुचती रही
पिटती रही मूक
ले जी में हूक
जब कभी जताया
तूने विरोध
कुचला पुरुष ने
निर्ममता से
विरोध को ही नहीं
तेरे तन को
लूटी तेरी अस्मत
दिए वो घाव
भयंकर वेदना
असह्य पीड़ा
हो गई शर्मसार
सारी इंसानियत।
-0-


शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

शीत-कन्या बेघर


डॉ सुधा गुप्ता

1-बर्फ़ ढो लाई
 दाँत किटकिटाती
 पौष की हवा
 सब द्वार थे बन्द
 दस्तक दी ,न खुला
2
रात बिताती
अलाव के सहारे
मज़ूरों - बीच
शीत-कन्या बेघर
सिर नहीं छप्पर ।
3
झोंक के मिर्च
शहर की आँखों में
लुटेरा शीत
सब कुछ उठाके
सरेशाम गायब ।
4
तीर -सी चुभी
खिड़की की सन्धि से
शातिर हवा
कमरे का सुकून
चुरा ले गई ।
5
धुआँती रही
चूल्हे की लकड़ियाँ
टपके  आँसू
पकाती रही हवा
कँकर वाला भात  ।
-0-

बुधवार, 26 दिसंबर 2012

तुम्हारा ये उजास


 कृष्णा वर्मा
1
सहती धरा
महावट दुश्वारी
तो खिले फुलवारी
जाने है मही
सहा ना यदि कष्ट
चती त्राहि-त्राहि
2
पतझड़ से
तरु और लताएँ
वस्त्रहीन हो जाएँ
शीत ऋतु आ
चाँदी -से चमकते
हिम वस्त्र ओढ़ाए।
3
ओढ़े हिम की
विश्व जब चादर
लगे स्वर्ग की हूर
तन चमके
चाँदी - सा चम-चम
भानु छिड़के नूर।
4
छिप गए क्यूँ
भयभीत शीत से
नभद्वीप की ओट
दिनकर !
तुम्हारा ये उजास
है जगती का प्राण।
5
कैसे अजब
कुदरत के रंग
हिम भी दे उजास
हिम गिरती
रजनी यूँ दमके
स्वर्ग का हो आभास।
-0-

मंगलवार, 25 दिसंबर 2012

सर्दी के दिन



1-शशि पुरवार 
1
सर्द मौसम
सुनसान थी राहें
चुप  किनारे
सिमट रहा  कोई
तार-तार कामरी ।
2
जमती साँसें
चुभती है पवन
फर्ज प्रथम     
जवानों की गश्त के
बर्फीले है कदम 

-0-

2-रेनु चन्द्रा
1
सर्दी के दिन
पंख फुला कर ये
प्यारी चिरैया
धूप सेक रही है
नर्म अहसास है।
  2
सर्दी की धूप
गुन गुनाती रही
प्यार के गीत
ओस बूँद चुनती
प्रेम धुन बजाती ।
-0-


रविवार, 23 दिसंबर 2012

धूप हुई चन्दन


डॉ सुधा गुप्ता
1
चिन्तित रात
सर्दी न खा जाएँ ये
शैतान बच्चे तारे
ऊँचे पलंग
कोहरे का कम्बल
ओढ़ा के बिठा दिया ।
2
अलसा गया
दिन का मज़दूर
धूप की ताड़ी पीके
औचक ही आ
अँधेरा छीन भागा
सारी कमाई लेके ।
3
वधूटी   सन्ध्या
सूरज को यों भाई
जल्दी घर खिसका
विलम रहा
चाशनी-डूबी बातों
अबेर से निकला ।
4
तापसी भोर
उदास एकाकिनी
राम-राम जपती
मुँह अँधेरे
हिम -कथरी ओढ़
गंगा नहाने चली ।
5
हेमन्त आया
धूप हुई चन्दन
सब माथे लगाएँ
जड़ -चेतन
सूरज ने रिखाए
सब सिर चढ़ाएँ ।
-0-

बूझो तो मैं हूँ कहाँ ?



1-डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
1
अरे सूरज !
जाने कहाँ खो गया 
शीत सिहरा 
कोहरे की चादर 
ओढ़कर सो गया ।
2
दो मुठ्ठी धूप 
छिड़की यहाँ -वहाँ 
मेघ -रजाई 
छिप के पूछे रवि
बूझो तो मैं हूँ कहाँ ?
3
तुषार बिंदु 
टप टप टपके 
फूल पांखुरी 
भोर की पलकों पे 
ज्यूँ हों मोती अटके ।
-0-
2-अनिता ललित 
1
सर्द मौसम,
ठिठुरते हैं जिस्म,
देखो ईश्वर!
कँपकपाते हाथ।।।
ढूँढे तेरा निशान।।! 
2
शीत - लहर,
ढाए कैसा कहर
बेबस हुआ
ग़रीब का आँचल
तपे, ठंडी आस में !
3
सर्दी की धूप,
तेरी यादों के जैसी
गुनगुनाती
रोम-रोम को मेरे,
झंकृत कर जाती !
4
छाया कोहरा,
सर्द आहें भरते,
बेबस सभी ! 
खुदा तेरी आस के,
जलते अलाव हैं !
5
सर्दी क़हर !
रात बहुत भारी !
दिन भी रोया !
गरीब जो सोया, तो 
खुली ही रहीं आँखें ! 
-0-

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

अँखिया राह तकें ( 214)


डॉ हरदीप कौर सन्धु
 1.
भावों का मेला है
इस जग- जंगल में
मन निपट अकेला है ।
2.
ख़त माँ का आया है
मुझको पंख लगे
दिल भी हरषाया है ।
3.
यह खेल अनोखा है
जग में हम आए
बस खाया धोखा हैं  ।
4.
ये गीत  पुराना है
रूठ गया माही
तो आज मनाना है ।
5.
तू जब से  रूठ गया
मुस्काना भूली
दिल मेरा टूट गया  ।
6
गुड़िया देख पटोले
छलकी ये आँखें
मेरा बचपन बोले ।
7 .
चलता कौन बहाना
मौत चली आई
बस साथ तुम्हें जाना ।
8.
गाँव कहाँ वो मेरा
मुर्ग़ा जब बोले
होता रोज सवेरा
9
शब्दों का  गीत बना
अँखिया राह तकें
तू दिल का मीत बना ।
10
अनजाने  भूल हुई
जो दी ठेस तुम्हें
मुझको वह शूल हुई ।
-0-

गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

तारों का मेला



 शशि पाधा
1
सन्ध्या की वेला है
नीले अम्बर में
तारों का मेला है ।
2
लहरें क्या गाती हैं
चंदा रोज़ सुने
क्या राग सुनाती हैं ।
3
अमराई छाई है
खुशबू के झोंके
पुरवा भरमाई है  ।
4
पागल मन झूम रहा
सावन की बूँदें
अधरों से चूम रहा
5
मन को समझाओ तो 
पंछी -सा उड़ता
क्या रोग बताओ तो  ।
6
हर बात छिपाते हो
कैसा रोग हुआ
क्यों वैद बुलाते हो ?
7
छन छन झंकार हुई
पायल तेरी थी
मेरी क्यों हार हुई  
8
तुम जीतो तो जानें
छम छम की भाषा
समझो तो हम मानें  
9
मन- पीड़ा झलक गई
नैनों की गगरी
कुछ काँपी, छलक गई ।
10
कंगना क्या बोल रहा
भेद कलाई के
धीमे से खोल रहा  
11
देहरी पर दीप धरूँ
पाहुन  आन खड़े
नैनों में हास भरूँ  
-0-