माहिया-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु
1
ये जीवन था सोना ,
किसकी नज़र लगी
अब माटी हर कोना ।
2
परिभाषा अपनों की
समझ न पाए थे
पीड़ा हम सपनों की ।
3
तू सपने में आया
बिन बात रुलाना
हमको न ज़रा भाया ।
4
पनघट भी प्यासा है
गर ओ बूँद मिले
बचने की आशा है ।
5
जो मीत हमारे थे
धोखा देने में
दुश्मन भी हारे थे ।
6
बिन मौत न हम मरते
तुमने दे डाले
वे घाव नहीं भरते ।
7
जीवन था चन्दन-वन
ऐसी आग लगी
झुलसा है तन औ मन ।
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6 टिप्पणियां:
परिभाषा अपनों की
समझ न पाए थे
पीड़ा हम सपनों की ।
बिन मौत न हम मरते
तुमने दे डाले
वे घाव नहीं भरते ।
बहुत बढ़िया।
यूँ तो एक-एक माहिया बहुत भावपूर्ण है।
आभार
जीवन था चन्दन-वन
ऐसी आग लगी
झुलसा है तन औ मन ।
jeevan aur chandan fir aag kya sunder upmayen hai bahut kuchh kahti hui
rachana
जो मीत हमारे थे
धोखा देने में
दुश्मन भी हारे थे ।
सभी माहिया बहुत अच्छे हैं, पर यह वाला तो गज़ब है...बधाई...|
प्रियंका
बहुत सुंदर माहिया पढ़े, दिल सुवासित हो गया ..यह तो मन में गहरे उतर गया .....
"बिन मौत न हम मरते
तुमने दे डाले
वे घाव नहीं भरते ।"
.इन्हें स्वरबद्ध करवाइए मज़ा आ जायेगा .. हिमांशु जी .वाह !
एक से बढ़ कर एक माहिया ...आभार !
डॉ सरस्वती माथुर
जीवन आवर रिश्तों के विभिन्न पहलुओं को छूते हुए ये माहिया बहुत अच्छे लगे हिमांशु जी | धन्यवाद |
विविध भावों से परिपूर्ण बहुत सुन्दर माहिया ....
जीवन था चन्दन-वन
ऐसी आग लगी
झुलसा है तन औ मन ।.....बेहद प्रभावी ....चन्दन-वन होना सरल तो नहीं ...बहुत बधाई
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