डॉ हरदीप कौर सन्धु
1.
भावों का मेला है
इस जग- जंगल में
मन निपट अकेला है ।
2.
ख़त माँ का आया है
मुझको पंख लगे
दिल भी हरषाया है ।
3.
यह खेल अनोखा है
जग में हम आए
बस खाया धोखा हैं ।
4.
ये गीत पुराना है
रूठ गया माही
तो आज मनाना है ।
5.
तू जब से रूठ गया
मुस्काना भूली
दिल मेरा टूट गया ।
6
गुड़िया देख पटोले
छलकी ये आँखें
मेरा बचपन बोले ।
7 .
चलता कौन बहाना
मौत चली आई
बस साथ तुम्हें जाना ।
8.
गाँव कहाँ वो मेरा
मुर्ग़ा जब बोले
होता रोज सवेरा
9
शब्दों का गीत बना
अँखिया राह तकें
तू दिल का मीत बना ।
10
अनजाने भूल हुई
जो दी ठेस तुम्हें
मुझको वह शूल हुई ।
-0-
3 टिप्पणियां:
बहुत भावपूर्ण माहिया है...| हार्दिक बधाई...|
प्रियंका
विविध भावों से भरे सुन्दर माहिया ...
ख़त माँ का आया है
मुझको पंख लगे
दिल भी हरषाया है ।....एक उमंग सी जगा गया ...बहुत बधाई !!
सभी माहिया बहुत ही सरस और सुंदर। २,६,८, और दसवें माहिये ने बहुत प्रभावित किया।
बधाई !
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