कृष्णा वर्मा
1
सहती धरा
महावट दुश्वारी
तो खिले फुलवारी
जाने है मही
सहा ना यदि कष्ट
मचती त्राहि-त्राहि ।
2
पतझड़ से
तरु और लताएँ
वस्त्रहीन हो जाएँ
शीत ऋतु आ
चाँदी -से
चमकते
हिम वस्त्र ओढ़ाए।
3
ओढ़े हिम की
विश्व जब चादर
लगे स्वर्ग की हूर
तन चमके
चाँदी - सा
चम-चम
भानु छिड़के
नूर।
4
छिप गए क्यूँ
भयभीत शीत से
नभद्वीप की ओट
ओ दिनकर !
तुम्हारा ये उजास
है जगती का प्राण।
5
कैसे अजब
कुदरत के रंग
हिम भी दे उजास
हिम गिरती
रजनी यूँ दमके
स्वर्ग का हो आभास।
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4 टिप्पणियां:
प्रकृति के अनेक रंग बिखेरते सुंदर सेदोका। इस ने बहुत प्रभावित किया -
"पतझड़ से
तरु और लताएँ
वस्त्रहीन हो जाएँ
शीत ऋतु आ
चाँदी -से चमकते
हिम वस्त्र ओढ़ाए।"
bahut sundar tanka krishna ji ,badhai
Bahut sundar abhivyakti....bahut2 badhai...
बहुत सुन्दर सेदोका ...
कैसे अजब
कुदरत के रंग
हिम भी दे उजास
हिम गिरती
रजनी यूँ दमके
स्वर्ग का हो आभास।...विशेष ! बधाई !
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