मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

शीशे बनी दीवारें


डॉ• भावना कुँअर
1
बोले न कोई
पंछियों के नीड़ों को 
है तोड़ गया कौन
नन्हें चूजों को
पुकार रही है माँ
न जाने क्यूँ वो मौन?
2
आज हवा में
कुछ अलग सी -ही
बात लगी है मुझे
बीते वक़्त की
भूली हुई यादों की
सौगात लगी मुझे।
3
यादों में जीना
मेरे दिल का बोझ
बेहिसाब बढ़ाए
थामे जो हाथ
जो लगे अपना -सा
वो सामने तो आए।
4
दहला गया
सोचों में ही मरना
इस कदर तुम्हें
चली जाऊँगी
असल ज़िंदगी में
तब जिओगे कैसे ?
5
बेचैन फिरें
इधर-उधर ये
बेबस मछलियाँ
तोड़ न पाएँ
शीशे बनी दीवारें
व्याकुल टकराएँ ।
6
जिद्दी तूफ़ान
उड़ाकर ले जाए
छप्पर और छान
सीने लगाए
बैठी रातभर माँ
काँपे नन्हीं -सी जान ।
7
भूखी बैठी माँ
कुठरिया में बन्द
अपनी यादों- संग
मौज़ मनाएँ
संगदिल औलादें
औ मटन उड़ाएँ।
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3 टिप्‍पणियां:

ज्योत्स्ना शर्मा ने कहा…

भूखी बैठी माँ
कुठरिया में बन्द
अपनी यादों- संग
मौज़ मनाएँ
संगदिल औलादें
औ मटन उड़ाएँ।....आज के रिश्तों का कड़वा सच ...!!

satishrajpushkarana ने कहा…

सभी सेदोका बेहद मार्मिक हैं ।

Krishna Verma ने कहा…

सभी सेदोका ह्रदयस्पर्शी भावना जी बधाई।