डॉ हरदीप कौर सन्धु
1
तुम मौसम
सर्दी में नाराज़गी
हो ऋतु बसंत से
दिल के कोने
तुम्हारी ये बसंत
मस्ती में मुस्कराए ।
2
तुम मौसम
सर्दी में नाराज़गी
हो ऋतु बसंत से
दिल के कोने
तुम्हारी ये बसंत
मस्ती में मुस्कराए ।
2
शरद भोर
खेले धूप मुँडेर
काढ़नी उबलता
माँ के आँगन
दूध धीरे- धीरे से
उड़ रही खुशबू ।
खेले धूप मुँडेर
काढ़नी उबलता
माँ के आँगन
दूध धीरे- धीरे से
उड़ रही खुशबू ।
2 टिप्पणियां:
"शरद भोर
खेले धूप मुँडेर
काढ़नी उबलता
माँ के आँगन
दूध धीरे- धीरे से
उड़ रही खुशबू ।"
बहुत सुंदर सेदोका !
डॉ सरस्वती माथुर
शरद भोर
खेले धूप मुँडेर
काढ़नी उबलता
माँ के आँगन
दूध धीरे- धीरे से
उड़ रही खुशबू ।.....सुन्दर चित्र उपस्थित किया आपने ...!!
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