कृष्णा वर्मा
लिपटी रहीं
स्मृति -परछाइयाँ
कभी डसतीं
कभी सहला
जातीं
अजब रानाइयाँ।
2
मीठी स्वप्निल
मदमाती स्मृतियाँ
बेताब सुनूँ
सरिता का सुस्वर
होंठों पे लिये हास।
3
राह निहारे
निष्पलक नयन
हो के उन्मन
किसकी स्मृतियों में
सुलगा तन-मन।
4
ओ रिमझिम
अँगना ना बरसो
सजन बसे
सात समुद्र पार
उठे जिया में ज्वार।
5
मौन गगन
जब चाँद हँसे ,ले
पूनो बाहों में
टूटे बाँध जिया का
मिलने की चाहों में।
6
पूनो में भीगी
मादक रात जब
शरमा जाए
प्रिय तुम्हारी याद
रह-रह के आए।
7
बही समीर
अंबुज लहरों पे
डोलता साया
पाश लिए पूनो को
मुग्ध चाँद बौराया।
8
घन गरजे
बसे दूर सजन
प्रिया अकेली
दुष्ट हवा आ करे
लटों से अठखेली।
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6 टिप्पणियां:
जितने सुंदर भाव उतना ही सुंदर शब्द-संयोजन ! बधाई उत्कृष्ट सृजन के लिए कृष्णा वर्मा जी !
भाव प्रबल एवं मनोहारी तांका...शुभकामनायें कृष्णा जी ...
Sundar
Sundar
सुंदर...बधाई कृष्णा वर्मा जी...|
बहुत सुन्दर ,सरस मधुर भावाभिव्यक्ति ....बहुत बधाई एवं शुभ कामनाओं के साथ ....ज्योत्स्ना शर्मा
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