शनिवार, 29 दिसंबर 2012

ले जी में हूक



सुशीला शिवराण

जननी, सुता
बहन, बीवी, दोस्त
स्‍नेहमयी तू
बहे बन ममता
नर-तन में
ले कोख में आकार
जब जीवन
जोड़ गर्भनाल से
देती पोषण
पिला छाती का दूध
सींचती तन
छीजती पल-पल
करती पुष्‍ट
एक मर्द की काया
मिटने में ही
आनन्द तूने पाया
हाय दुर्भाग्य !
कैसी ये विडम्बना
मिटती रही
तू पुरुष के हाथों
कभी कोठे पे
बिका है  बचपन
कभी खरीदा
सम्पत्ति की तरह
लूटा-खसोटा
भेड़िए की तरह
नुचती रही
पिटती रही मूक
ले जी में हूक
जब कभी जताया
तूने विरोध
कुचला पुरुष ने
निर्ममता से
विरोध को ही नहीं
तेरे तन को
लूटी तेरी अस्मत
दिए वो घाव
भयंकर वेदना
असह्य पीड़ा
हो गई शर्मसार
सारी इंसानियत।
-0-


4 टिप्‍पणियां:

Krishna Verma ने कहा…

बहुत मार्मिक प्रस्तुति सुशीला जी बधाई।

sushila ने कहा…

आभार Krishna Verma जी।

ज्योत्स्ना शर्मा ने कहा…

बहुत मर्मस्पर्शी ...सुशीला जी

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

बहुत मार्मिक...सच है...|
बधाई...

प्रियंका