डॉ सुधा गुप्ता
1-बर्फ़ ढो लाई
दाँत किटकिटाती
पौष की हवा
सब द्वार थे बन्द
दस्तक दी ,न खुला ।
2
रात बिताती
अलाव के सहारे
मज़ूरों - बीच
शीत-कन्या बेघर
सिर नहीं छप्पर ।
3
झोंक के मिर्च
शहर की आँखों में
लुटेरा शीत
सब कुछ उठाके
सरेशाम गायब ।
4
तीर -सी चुभी
खिड़की की सन्धि से
शातिर हवा
कमरे का सुकून
चुरा ले गई ।
5
धुआँती रही
चूल्हे की लकड़ियाँ
टपके आँसू
पकाती रही हवा
कँकर वाला भात ।
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6 टिप्पणियां:
धुआँती रही
चूल्हे की लकड़ियाँ
टपके आँसू
पकाती रही हवा
कँकर वाला भात ।
jitni prasnsha ki jaaye kam hai ....bahut2 badhai...
धुआँती रही
चूल्हे की लकड़ियाँ
टपके आँसू
पकाती रही हवा
कँकर वाला भात ।.....bahur sundar panktiya wah
धुआँती रही
चूल्हे की लकड़ियाँ
टपके आँसू
पकाती रही हवा
कँकर वाला भात।
सर्वोत्तम तंका बहुत-२ बधाई।
सुन्दर बिम्ब प्रस्तुत करते बहुत सुन्दर ताँका ..
बहुत बधाई दीदी
सादर ..ज्योत्स्ना शर्मा
सुधा दी की लेखनी से तो मोती ही निकलते हैं ! मानवीकरण के माध्यम से क्या बिंब चित्रित किए हैं ! अति सुंदर!
क्या बात है...वाह...आनंद आ गया...|
आभार और बधाई...|
प्रियंका
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