शशि पाधा
1
सन्ध्या
की वेला है
नीले
अम्बर में
तारों का
मेला है ।
2
लहरें
क्या गाती हैं
चंदा रोज़
सुने
क्या राग
सुनाती हैं ।
3
अमराई
छाई है
खुशबू के
झोंके
पुरवा
भरमाई है ।
4
पागल मन
झूम रहा
सावन की
बूँदें
अधरों से
चूम रहा ।
5
मन को
समझाओ तो
पंछी -सा
उड़ता
क्या रोग
बताओ तो ।
6
हर बात
छिपाते हो
कैसा रोग
हुआ
क्यों
वैद बुलाते हो ?
7
छन छन
झंकार हुई
पायल
तेरी थी
मेरी
क्यों हार हुई ।
8
तुम जीतो
तो जानें
छम – छम की
भाषा
समझो तो
हम मानें ।
9
मन- पीड़ा झलक गई
नैनों की
गगरी
कुछ काँपी,
छलक गई ।
10
कंगना
क्या बोल रहा
भेद कलाई
के
धीमे से
खोल रहा ।
11
देहरी पर
दीप धरूँ
पाहुन आन खड़े
नैनों
में हास भरूँ ।
-0-
3 टिप्पणियां:
कोमल भावों से परिपूर्ण सुन्दर मधुर माहिया ...बहुत बधाई आपको !!
बहुत ही भावपूर्ण और सुंदर माहिया। बधाई शशि जी !
छन छन झंकार हुई
पायल तेरी थी
मेरी क्यों हार हुई ।
बहुत सुंदर सहज और सरल ..
बधाई शशि दी..
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