मंगलवार, 20 जून 2023

1124

 सुदर्शन रत्नाकर

 1

कैसी यह मजबूरी

हो तो पास मगर

इतनी क्यों है दूरी।

 2

वो चाँद बुलाता है

किरणें रूठी हैं

हर समय रुलाता है।

3

फूलों को खिलने दो

बहती नदिया को

सागर से मिलने दो।

4

नदिया की धारा है

डूब रही नैया

वह एक सहारा है। 1

5

बूँदें तो बरस रहीं

तुझसे मिलने को

ये अँखियाँ तरस रहीं।

6

हरियाली छाई है

फूलों का मौसम

मादक ॠतु आई है।

7

रंगों का मेला है

फूलों को छू लो

पावन ये बेला है।

8

क़िस्मत का खाता है

कर्म करे जो भी

वो ही फल पाता है

9

पानी जो बरसा है

सूखी धरती का

 मन भी, लो सरसा है।

10

लो सावन आया है

धरती से मिलने

वो बूँदें लाया है।

11

यादों का मेला है

कैसे भूलूँ मैं

मन निपट अकेला है।

12

 

छाया के बूटे हैं

माँ सच्चा रि़श्ता 

बाक़ी सब झूठे हैं।

-0-

ई-29, नेहरू ग्राउंड फ़रीदाबाद 121001

शुक्रवार, 9 जून 2023

1123

 

कृष्णा वर्मा

1

ओस में डुबो

उकेरा उँगली ने

काँच पटिया पर

जो तेरा नाम

ठहर गई निशा

चलता रहा चाँद।

2

नामुमकिन

किसी बरसात को

बूँद-बूँद लिखना

हज़ारों शब्द

दिए हैं क्रंदन को

लाखों बचे हैं बाकी।

3

अपना हाथ

छुड़ाकर ख़ुद से

निकल आए दूर

वक़्त है कम

चलो मुड़के चलें

अपने से मिलने।

4

चला सूरज

दिन के मुँह पर

मलके उदासियाँ

उन्मन साँझ

ओस-ओस रोएगी

रात भर रजनी।

5

आसान नहीं

डालियों से छूट के

दूजों- संग उड़ना

अंधी भीड़ में

कोई न अपना जो

बचाए आँधियों से।

6

जारी करे जो

सूरज फ़रमान

कोने-कोने जा धूप

करे तलाशी

हवा लुके पत्तों में

सहमी डरी-डरी।

7

सनद पर

उमर की झुर्रियाँ

करतीं हस्ताक्षर

दोहराता है

फिर से बचपन

अपनी कहानियाँ।

8

उम्र के पग

जितना बढ़ें आगे

उतना ही अधिक

ना जाने कौन

जीवन की रील को

फेर देता है उल्टा।

9

नित्य खेंची हैं

आँखों के किनारों पर

काजल की रेखाएँ

फिर क्यूँ कैसे

यादों के रेले संग

आ जाता है सैलाब।

10

खुल जाते हैं

जब यादों के थान

मिलें गज-गज पे

दुख-सुख की

धुँधली-सी मोहरें

औ रिश्तों के ज़खीरे।

11

भरे अहं से

बनें आदर्शवादी

उलझें बहस में

भीतरी पशु

रंगले सियारों की

खोल देता है पोल।

12

दूजों से ज़्यादा

अपनों से रहना

हमेशा सावधान

राम से नहीं

विभीषण से हारा

रावण बलवान।

13

मरा भरोसा

कोई नहीं अपना

वक़्त हुआ शैतान

कहें जो रिश्ते

साथ नहीं छोड़ेंगे

ले लेना हस्ताक्षर।

14

अपने दुख

अपनी मजबूरी

रखें अपने तक

मुखर होके

कह दिए किसी को

वो सौदा ही करेंगे।