कृष्णा वर्मा
1
ओस में डुबो
उकेरा उँगली ने
काँच पटिया पर
जो तेरा नाम
ठहर गई निशा
चलता रहा चाँद।
2
नामुमकिन
किसी बरसात को
बूँद-बूँद लिखना
हज़ारों शब्द
दिए हैं क्रंदन को
लाखों बचे हैं बाकी।
3
अपना हाथ
छुड़ाकर ख़ुद से
निकल आए दूर
वक़्त है कम
चलो मुड़के चलें
अपने से मिलने।
4
चला सूरज
दिन के मुँह पर
मलके उदासियाँ
उन्मन साँझ
ओस-ओस रोएगी
रात भर रजनी।
5
आसान नहीं
डालियों से छूट के
दूजों- संग उड़ना
अंधी भीड़ में
कोई न अपना जो
बचाए आँधियों से।
6
जारी करे जो
सूरज फ़रमान
कोने-कोने जा धूप
करे तलाशी
हवा लुके पत्तों में
सहमी डरी-डरी।
7
सनद पर
उमर की झुर्रियाँ
करतीं हस्ताक्षर
दोहराता है
फिर से बचपन
अपनी कहानियाँ।
8
उम्र के पग
जितना बढ़ें आगे
उतना ही अधिक
ना जाने कौन
जीवन की रील को
फेर देता है उल्टा।
9
नित्य खेंची हैं
आँखों के किनारों पर
काजल की रेखाएँ
फिर क्यूँ कैसे
यादों के रेले संग
आ जाता है सैलाब।
10
खुल जाते हैं
जब यादों के थान
मिलें गज-गज पे
दुख-सुख की
धुँधली-सी मोहरें
औ रिश्तों के ज़खीरे।
11
भरे अहं से
बनें आदर्शवादी
उलझें बहस में
भीतरी पशु
रंगले सियारों की
खोल देता है पोल।
12
दूजों से ज़्यादा
अपनों से रहना
हमेशा सावधान
राम से नहीं
विभीषण से हारा
रावण बलवान।
13
मरा भरोसा
कोई नहीं अपना
वक़्त हुआ शैतान
कहें जो रिश्ते
साथ नहीं छोड़ेंगे
ले लेना हस्ताक्षर।
14
अपने दुख
अपनी मजबूरी
रखें अपने तक
मुखर होके
कह दिए किसी को
वो सौदा ही करेंगे।
5 टिप्पणियां:
कितने सुंदर भावों से पूर्ण अपने हृदय की वास्तविकता अनमोल कल्पना से व्यक्त करने की कला है कृष्णा जी के पास | हृदय स्पर्शी रचना शुभकामनाओं सहित -श्याम हिन्दी चेतना
वाह! एक से बढ़कर एक सुंदर सेदोका! आनन्द आ गया कृष्णा जी!!
भावपूर्ण सुंदर सेदोका की हार्दिक बधाई।
बहुत बहुत सुंदर भावपूर्ण सेदोका कृष्णा जी। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
एक से बढ़कर एक भावपूर्ण सेदोका
सभी सेदोका गहन अर्थ लिए हुए
सुंदर सृजन के लिए हार्दिक बधाई कृष्णा जी
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