सोमवार, 19 फ़रवरी 2024

1159-माहिया

 

 रश्मि विभा त्रिपाठी
1


कोई तारा टूटे
माँगी एक दुआ
ये साथ नहीं छूटे।
2
जख्मों को सिलता है
तुम- सा साथी तो
किस्मत से मिलता है।
3
जब तू मुसकाता है
खुशबू का दरिया
बहता ही जाता है।
4
जिस पल तुम पास रहे
जीने का मुझको
उस पल हसास रहे।
5
माना बरसों बीते
तुमसे बिछुड़े पर
तुम मुझमें ही जीते।
6
तुमसे अपना नाता
कितने जनमों का
मन समझ नहीं पाता।
7
तुमको ऐसे पाया
तन के संग- संग ज्यों
रहती उसकी छाया।
8
हर रोज उजाले हैं
ख्वाब तुम्हारे ही
आँखों में पाले हैं।
9
खिड़की ये यादों की
जब भी खुलती है
ज्यों रातें भादों की।
10
देते हो रोज दुआ
हर इक मंजर में
मुझको महसूस हुआ।
11
तुमने अपनाया है
एक नया जीवन
मैंने तो पाया है।
12
सोना, चाँदी, हीरा
कुछ भी ना चाहूँ
तुम मोहन, मैं मीरा।

13

जब- जब भी मैं आऊँ
तो इस दुनिया में
हर बार तुम्हें पाऊँ।
14

जाना है तो जाओ
फिर कब आओगे
बस इतना बतलाओ।

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मंगलवार, 6 फ़रवरी 2024

1158

 दहशत

डॉ . सुरंगमा यादव


वसंत ऋतु अपनी छटा बिखेरे कोकिल के स्वर में गा रही थी
पशु-पक्षी निर्भय विचरण कर रहे थे ; लेकिन सहमे हुए थेकोयल का स्वर भी उमंग जगाने में असमर्थ लग रहा थागगन में उड़ते हुए पंछी विमानों को न देखकर हैरान थे हवाई जहाज पिंजरे मे कैद पंछी की तरह एयरपोर्ट पर खड़े जैसे उड़ना ही भूल ग हों रेल की पटरियों को अवकाश दे दिया गया,चक्के जाम थेसड़कों पर सन्नाटा ही  सन्नाटा लंबी कतारों को न देखकर ट्रैफिक लाइटें भी हैरान थीं गाड़ियों और बाइकों की आवाज सुनने को सड़कों के कान तरस गये थे, हाँ पुलिस की गाड़ी का हार्न और एंबुलेंस का सायरन नीरवता  को तोड़कर दहशत पैदा कर देता था

 कोरोना की पहली लहर और देश में संपूर्ण लाकॅडाउनघर में बंद -बंद जी घबरा उठाशाम के समय घर से  थोड़ी ही दूर पर बने पार्क में जा बैठने  को मन उतावला हो उठादहशत भरे माहौल में लगभग तीन सौ मीटर दूर पार्क तक जाना लंबी यात्रा की तरह कष्टदायी लग रहा थासड़क पर कुत्ते निर्भय  सो रहे थे ,उन्हें इस समय न बाइक आने की चिंता थी, न गाड़ी- मोटर की थके कदमों से चलते-चलते मैं वहाँ तक पहँची तो देखकर हैरान रह ग कि बहुत सुंदर और सुव्यवस्थित रहने वाला पार्क बिना माली के उजड़े चमन -सा हो गया था पार्क की बेंच पर बैठकर एक नजर चारों ओर दौड़ाई, तो लगा जैसे पार्क कह रहा हो, हम भी क्वारंटीन हो ग हैहम से मिलने अब कोई नहीं आता।  बच्चे खेलने नहीं आते है बड़े-बूढ़ों के सुख-दुःख सुने अरसा हो गयामहसूस हुआ, जैसे प्रकृति भी अपनी संतानों के कष्ट देखकर दुःखी हो रही है हवा भी संकोच से चल रही थी,क्योंकि वायरस उसमें समाकर उसे भी बदनाम कर रहा थावसंत में पतझर का अहसास पहली बार हुआ
यह क्या हुआ
डराने लगी हवा
सहमे पात

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