बुधवार, 18 अगस्त 2021

983

 पूनम  सैनी








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सेदोका-मीरा गोयल

1

लग जा गले

आडम्बर न कर

मेजबान होने का,

न मेहमान।

समय नहीं बचा

पानी-सा बह चला।

2

अधीर हिय

विरोधी आकांक्षाएँ

पराजय निश्चित

एक म्यान में

चाहो दो तलवार

असंभव चयन।

3

महत्त्वाकांक्षा

निश्चयात्मक पग

लक्ष्य सिद्धि संभव

माया न क्षोभ

लक्ष्य बने सर्वस्व

धर्म कर्म नियम।

4

हठी  है हं!

दुःख सहना, देना

है, उसका व्यसन

जीतने न दो

तोड़ो ये सिलसिला

आत्मा को मत रुला।

5

त्रिगुणात्मक

नियम प्रकृति का

है सत, रज, तम

लो पहचान।

सहर्ष अपनाओ

संघर्ष बिसराओ।

6

मोह व्यर्थ है

चिन्ता है निरर्थक

कर्म बने प्रधान

शुद्ध हृदय

सरल अभिव्यक्ति

सार्थक हो जीवन।

7

नहीं विजय

प्रकृति से उलझे

अखण्डित नियम

अपक्षपाती

भोगना है सब को

आज नहीं तो कल।

8

मानव मन

शंकित पीड़ित क्यों

न छोड़ सके माया

न त्यागे धर्म

साँप छछून्दर-सा

उगले न निगले।

9

मानव मन

अनबूझ पहेली

खुद नहीं जानता

चाहता है क्या

पूरब औ पच्छिम

चाहता साथ साथ।

10

मिलोगे तुम

प्रफुल्लित हुई मैं

तुम्हारी इच्छा पूर्ति

संतोष मुझे

सफलित कमाना

सुखी अन्तरात्मा।

-0- madeera.goyal@gmail.com

शुक्रवार, 13 अगस्त 2021

982

 भीकम सिंह 

1

-पुराने 

पत्थर बिखराए 

पहाड़ ने यू

गुस्से में मौन तोड़ा 

किसी तपस्वी ने ज्यों।

2

धकेले पार

पापी पतझड़ को 

ऋतु बहार

सूर्य की अरुणाई 

देती सुख अपार।

3

छोटा पाट  ले

बलखाती सिन्धु ने 

नीली चूनर

घाटियों को ओढ़ाई

तो पवन बौराई 

4

पहरा देता 

पत्थरों के अस्त्र ले

पहाड़ बड़ा

दे रहा निमंत्रण 

शांति का खड़ा-खड़ा।

5

बाहें बड़ी-सी 

हर ओर फैलाते 

प्यारे पर्वत 

नदियों में मुस्काते 

दु:ख ना कह पाते।

6

पत्थर टूटे 

मौन मुखर हुआ 

परबतों का 

झरी है कांत काया 

धूल ने यूँ बताया 

7

मूक है  बड़ा 

कोलाहल से भरा 

दर्द से हरा 

पहाड़ बैठ रहा 

दूर से  दीखे खड़ा।

8

देख अकेला 

पृष्ठभूमि में चाँद 

तारें लूटते 

पहाड़ों पर  नींदे

पर्यटक उनींदे 

9

मेघ ज्यों फटा 

पहाड़ों से भी ऊँचे 

रु उखड़े 

लहरों पे तैरते 

पत्थरों के  टुकड़े।

10

पेड़ कहते 

पर्वतों की कहानी 

देके गवाही 

विकास के नाम पे 

जीवन की तबाही।

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मंगलवार, 10 अगस्त 2021

981

 ताँका

मंजूषा मन

1

सौदा किया था

सुख अपने देके

दुख लिया था,

फिर भी मुस्काए हैं

चलो! काम आए हैं।

2

पीड़ा के वक़्त

छोड़ जाएँ अकेला

अपने सब,

कैसा लगा है रोग

पराए सारे लोग।

3

टीसते नहीं

पुराने हुए जख्म

हुआ लगाव

लगने लगे प्यारे

अब ये दर्द सारे।

4

रहे मौन ही

घातें आघातें झेल

रो भी क्या पाते

सारा मान गँवाते,

कह किसे बताते।

5

सुख चाहा था

पाए तिरस्कार ही

स्वयं को लुटा

जिसके लिए खोए

काँटे उसने बोए।

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