मंगलवार, 16 अक्तूबर 2018

838-निर्मलमना !


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
देह का धर्म
निभाया रात-दिन
हाथ क्या आया?
वासना बुझी नहीं
राख हो गए कर्म।
2
विश्वास छला
ईर्ष्या अनल  जगी
सब ही जला
फूटी आँखों न भाया
सच्चा प्यार किसी का।
3
जलाने चले
औरों के घर- द्वार
हजारों बार
जीभर वे मुस्काए
विद्रूप  हुआ रूप।
4
निर्मलमना !
गोमुख के जल- सा
पावन प्यार
समझेंगे वे कैसे
जो नालियों में डूबे?
5
शान्त- विमल
शरदेन्दु -सा भाल
नैनों की ज्योति
बहाती सुधा -धार
ओक से पिया प्यार।
-०-

रविवार, 14 अक्तूबर 2018

837


डॉ.भावना कुँअर
1
रोली लेकर
आया अमलतास
औ कचनार
उबटन का थाल
बसन्त दूल्हा आज।
2
हाथ में कूँची
बसन्त लेके घूमें
नारंगी,पीले
गुलाबी,लाल,हरे
कितने रंग भरे।
3
पीली चूनर
कचनार ले आया,
गुलमोहर
गहरा लाल जोड़ा,
हरियाली दुल्हन।
4
गागर मेरी
दर्द से लबालब
कभी न रीती
अपनों ने दी मुझे
गहरी अनुभूति।
5
घर में आए
बनकर वो दोस्त
लगाएँ सेंध
हम भरोसा करें
वो छुप-छुप छलें।
6
मेरी भी प्रीत
थी मीरा जैसी साँची
विष का प्याला
उसने जो पिलाया
हँसी,होठों लगाया।
7
कोसते रहे
रात दिन मुझको
पतझर- सी
मैं झरूँ रात दिन
पर उफ! न करूँ।
8
जलते रहे
उड़ान देख मेरी
काटा परों को
ऊँची उड़ान कभी
अब भर न सकूँ।
9
पानी ही पानी
लील गया कितने
आँखों के ख़्वाब
बेबस लोगों की
कीमती जिंदगानी।
10
खूब ही रोया
जार -जार सावन
फिर भी धूप
हालत पर उसकी
तरस ही न खाए।
11
किसको कहूँ
है कौन यहाँ मेरा
मन की बात
बिन कहे समझे
मेरा दर्द भी बाँटे।
1
2
मेरा ये मन
पुकारे तुमको ही
तुम हों कहाँ
अपनी दुनिया में
क्यों रहते हो वहाँ।
1
3
दिन पखेरू
सुख के बन गए
दु;ख बने हैं
लम्बी,काली गहरी
अमावस की रात।
14
मुश्किल हुआ
समझना तुझको
तेरी प्रीत की
मचलती लहरें
उछलती बिछती।
15-एक लहर
मैं ढूँढू हर दिन
करे मुझपे
प्रेम -भरी बौछार
पर वो डुबा जाए।
-0-

बुधवार, 10 अक्तूबर 2018

836-घट-स्थापना

 घट -स्थापना 

डॉ.कविता भट्ट 

हे  पिता मेरे !
करते हुए आज
घट- स्थापना
स्नेह -जल भरना
घट-भीतर
और अक्षत कुछ
मेरे नाम के
उसमें डाल देना
कुछ जौ बोना
हरियाली के लिए
तरलायित 
स्नेह में भिगोकर,
फलेगी पूजा
बिन जप-पूजन
मेरे नाम से
अभिमंत्रित कर
नित्य सींचना
ओ ! मेरे सूत्रधार
गर्भ में बोया
है मुझे तुमने ही
अंकुरित हूँ
अब प्रथम बीज
हूँ शैलपुत्री
बनूँगी सिद्धिदात्री
ध्यान रखना !
नष्ट नहीं हो जाए
गर्भ में अंकुरण !!
-०-
(चित्र : गूगल से साभार )

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2018

835


बापू 
 डॉ.जेन्नी शबनम

जन्म तुम्हारा
सौभाग्य है हमारा
तुमने दिया
जग को नया ज्ञान
हारे- पिछड़े
वक्त ने  जो थे मारे
दुख उनका
सह न पाए तुम
तुमने किया
अहिंसात्मक जंग
तुमने कहा-
सत्य और अहिंसा
च्चे विचार
स्वयं पर विजय
यही था बस
तुम्हारा हथियार
तुम महान
ला नया विहान
दूर भगाया
विदेशी सरमाया
मगर देखो
तुम्हारा उपकार
भूला संसार
छल से किया वार
दिया आघात
जो अपने तुम्हारे
सीना छलनी
हुई लहूलुहान
तुम्हारी भूमि
प्रण पखेरू उड़े
तुम निष्प्राण
जग में कोहराम
ओह! हे राम!
यह क्या हुआ राम!
हिंसा से हारा
अहिंसा का पुजारी
तुम तो चले गए
अच्छा ही हुआ
न देखा यह सब
देख न पाते
तुम्हारी कर्मभूमि
खंडों में टूटी
तुम्हारा बलिदान
हुआ है व्यर्थ
तुम्हारे अपने ही
छलते रहे
खंजर भोंक रहे
अपनों को ही
तुम्हारी शिक्षा भूल
तुम्हारा दर्शन
तुम्हारे विचार त्याग
घिनौने कार्य
तुम्हारे नाम पर
ओह! दुख:द!
हम नहीं भूलेंगे
अपनाएँगे
तुमसे सीखा पाठ
नमन बापू
पूजनीय हो तुम
अमर रहो तुम।
-0-


834


मंजूषा मन

1
जीना मजबूरी है
खुशियों से अपनी
सदियों की दूरी है।
2
उस ओर सवेरे हैं
बातें झूठी सब
हर ओर अँधेरे हैं।
3

कैसे ताने बाने
जीवन चादर में
धागे खुद को ताने।