गुरुवार, 13 जनवरी 2022

1021-चैन की साँस

 ताँका-प्रीति अग्रवाल

1.
तोड़ी हमने
रूढ़ियों की बेड़ियाँ
चैन की साँस
खुला, नीला आकाश
कुछ और न चाह!
2.
अधीर-सा है
आज फिर ये मन
ढूँढ रहा है
कुछ प्रश्नों के हल
कुछ सुकूँ के पल।

3.
आखिर क्या है
प्रेम की परिभाषा
कोई न जाने
राधा, मीरा, पद्मिनी
सीता या यशोधरा?
4.
स्कूल, कॉलेज
जीवन-पाठशाला
सब पे भारी
चुन-चुन दे शिक्षा
ज्ञान भरी पिटारी।
5.
बत्तू है चाँद
मीठी-मीठी बतियाँ
रोज़ सुनाए
न मुझे ही सोने दे
न खुद सोने जाए। 

-0-

1020-कर्मयोगी पिता

 सेदोका- रश्मि विभा त्रिपाठी

1
पिता तुमने
बनके कर्मयोगी
परपीड़ाएँ भोगी
तुम्हारी सुधि
क्या उन्हें आती होगी
वे 'कृतघ्नता- रोगी'
2
तुमने छोड़ा
जबसे मेरा हाथ
विप्लव दिन- रात
झेल रहे हैं
प्रतिपल आघात
प्राण- मन औ गात।
3
बीत गए हैं
कई माह औ साल
कितनी मैं बेहाल
क्यों न आए
पिता की तस्वीर से
प्राय: पूछूँ सवाल।
4
विचर रहे
दूरस्थ दिव्य लोक
देखें जो आते शोक
प्राय: पिता के
अभ्यर्थना के श्लोक
देते दु:ख को रोक।
5
जबसे गए
जीवन- उपवन
नीरव औ निर्जन
किंतु पिता का
मंगलाकांक्षी मन
होने न दे उन्मन।
6
शुभाशीष के
बरसाएँ सुमन
स्वर्ग से हो मगन
प्यारे पिता का
करुणाकारी मन
करे धन्य जीवन।
7
तुम तक क्या
कोई जाती है राह
पूछ रही है आह
तुम्हारे बिन
पिता जग में कैसे
अकेले हो निबाह।
8
तुम सर्वज्ञ
और हो अगोचर
रहे सदा तत्पर
रखते ध्यान
मेरा प्रति पहर
मुझे व्यापे न डर।
9
घड़ी दु:ख की
मुझपर जो बीती
औ जिजीविषा रीती
आशीष-सुधा
पिता उड़ेलें, पीती
पुनि तभी मैं जीती। 

-0-

सोमवार, 10 जनवरी 2022

1019-समय-चक्र

 

डॉ. सुधा गुप्ता

1

समय-चक्र


जीवन-अरगनी

सुख-दु:ख लटके,

धोते-सुखाते

कभी मुस्कान खिली

कभी आँसू टपके।

2

इतनी पीड़ा!


रुदन भी खो गया

अचरज बो गया,

सूखी आँखों में

बस जलन बाकी

हर साथी खो गया।

-0-  (सभी चित्र गूगल से साभार)

गुरुवार, 6 जनवरी 2022

1018-आशाओं की उड़ान

 रश्मि विभा त्रिपाठी

1
ये अँधियारे

प्रिय! छँट जाएँगे

कितना सताएँगे

हम धैर्य के

दीपक जलाएँगे

दीप्ति- गीत गाएँगे।

2

उपयुक्त है

केवल मन- प्रांत

जहाँ मिले एकांत

आरम्भ करें

अनुराग- वृत्तांत

आओ आसन्न कांत।

3

प्रिय ने दिया

अतुल्य पाँख-दान

और प्रतिष्ठा-मान

भर रही हूँ

आशाओं की उड़ान

'छुऊँ मैं आसमान'।

4

किंचितमात्र

गला न पाएँ दाल

वैरी बड़े बेहाल

प्रिय बनके

मेरी श्वासों की ढाल

काटें कुल जंजाल।

5

हरकारा दे

अनुभूति तत्काल

मैं जो होऊँ बेहाल

अलि! आ काटें

प्रिय पीड़ा- जंजाल

दुआ- दीप दें बाल।

6

वहन करे

मेरा जीवन-भार

भूलूँ न उपकार

बड़े भाग से

डूबी, उबरी, पार

प्रीति खेवनहार।

7

प्रवहमान

मन- गंगा प्रेमिल

भाव- वीचि फेनिल

मैं प्रिय संग

डूबी तो गया मिल

अनुराग अखिल।

8

प्रियवर का

प्रार्थना का प्रयोग

लाया है शुभ योग

मैं मुक्त हुई

निरस्त अभियोग

निर्वासित वियोग।

9

कदाचित हो

संकट से सामना

प्रिय निश्चलमना

आलिंगन में

कस पिघला देते

अवसाद ये घना।

10

क्रूरतापूर्ण

करें शर- संधान

कष्ट औ व्यवधान

प्रीति प्राणदा

फूँके मुझमें जान

प्राण- मानस त्रान।