1-कृष्णा वर्मा
1
बादल कारे
अम्बर के नैन भरे
उछल पड़े धारे
प्रीतम दूर
प्रिय का चैन डूबा
टूटे सब्र किनारे।
2
नभ में घन
छाते हैं जब-जब
गीत मग्न हो जाते
गा मल्हार
रिझाए सजनिया
प्रिय दूर मुस्काते।
3
बूँदें झरतीं
वृक्ष कहें स्वागत
धन्य होए धरती
प्यासे चातक
की, आस तृप्त
होती
बदली जब रोती।
4
बदरी छाई
पहन के पायल
हवा छनछनाई
जी तड़पाएं
गा-गा कर मल्हारें
प्रीत भरी
फुहारें।
5
सजीले मेघ
लगा काजल धार
हृदय भर प्यार
चले भिगोने
धरती का आँचल
तन मन निसार।
6
ताके अडोल
काली-काली बदली
लिये पानी के
डोल
बरसूँ कि
ना
सोचती दुविधा में
है मिज़ाजन बड़ी
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