परमजीत कौर 'रीत'
1
खामोशी कहती है
यादें सावन बन
आँखों से बहती हैं
2
आँगन के फूलों की
याद बहुत आए
नानी-घर झूलों की
3
नभ को तकती नजरें
पाँव धरा पे जो
मंजिल थामे बाहें ।
4
क्या खोना ,क्या
पाना
अपनों के बिन ,जी!
क्या जीना,मर
जाना।
-0-kaurparamjeet611@gmail.com
-0-
8 टिप्पणियां:
क्या खोना ,क्या पाना
अपनों के बिन ,जी!
क्या जीना,मर जाना।
अपनों के बिन, जी
सुंदर प्रयोग।
अच्छे माहिया, बधाई।
बहुत सुन्दर माहिया, बधाई परमजीत जी.
आँगन के फूलों की
याद बहुत आए
नानी-घर झूलों की
हाँ सच्ची, कितना कुछ याद आता है ऐसा...| भावपूर्ण और बेहतरीन माहिया के लिए आपको बहुत बधाई...|
उम्दा भावपूर्ण माहिया परमजीत जी बहुत बधाई आपको।
सुन्दर माहिया रचे परमजीत जी ।बहुत भाये ।
सुन्दर माहिया ..हार्दिक बधाई !
भावपूर्ण माहिया परमजीत जी.. बहुत बधाई!!
मनभावन माहिया परमजीत जी ।ढेर बधाई ।
क्या खोना ,क्या पाना
अपनों के बिन ,जी!
क्या जीना,मर जाना ।
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