1-डॉ हरदीप कौर सन्धु
नम्बर प्लेट
घुलते हुए बादलों से आसमान मटमैला हो गया था। तेज़ अँधेरी के संग
बारिश होने लगी थी। आम दिनों से थोड़ा ज्यादा
ट्रैफिक घीमी रफ़्तार से चल रहा था। अचानक तेज़ी से एक सुनहरी कार मेरे पास से निकली।
मेरी सरसरी नज़र उस कार की छह अक्षरों नंबर प्लेट पर गई। एक अनूठे से क्रम में सजे अक्षर
–‘ LUVSON’ मेरा अवचेतन मन अपनी आदत
के मुताबिक इन अक्षरों में छुपे शब्द जोड़ ढूँढने
लगा। समझ आते ही रूह सरशार हो गई। चाहे माँ -बाप के अमूल्य मोह
को दर्शाने के लिए किसी प्रमाणित तख्ती की ज़रूरत नहीं होती, मगर फिर भी पुत्र प्यार
को प्रकट करने का यह अनोखा अंदाज़ मेरे मन सागर में रस घोल गया।
यह सुनहरी कार अब मेरे सामने
जा रही थी। मेरी नज़र अब उस कार के पिछले काँच वाली लिखाई पर अटकी हुई थी। मनमोहक फूलों
के संग एक नाम, जन्म तथा मृत्यु की तारीख के साथ उकरा हुआ था।
"जो उपजै सो बिनसि है "-अभी तो कली ने
फूल बन खिलना था। कोई डेढ़ दशक पहले किसी की नन्ही जान अपनी ज़िन्दगी की केवल दस बहार
देखकर इस रँगीले जग से रुखसत हो गई थी। ऐसे हुए अनर्थ में असमय चली अँधेरियों की शाँ
-शाँ अब मुझे साफ़ सुनाई दे रही थी।
कुछ पल बाद सुनहरी कार
मेरी कार से थोड़ी दूरी पर आ रुकी थी। एक अधेड़ आयु की कमज़ोर- सी दिखती महिला उस कार
में से उतरी। वह तो तेज़ कदमों चलती भीड़ में कहीं गुम हो गई थी; मगर उसके जीवन के पलों की अनदेखी दास्ताँ मेरी आँखों
के सम्मुख चित्रित होने लगी थी। कभी वह मुझे ज़िन्दगी के पिघलते किनारों पर खड़ी नज़र
आई ,तो कभी उदासी की परतें पलटती। पुत्र की मृत्यु की क्रूर परछाईं ने उसके मन को टुकड़े
-टुकड़े कर दिया होगा। उदास तथा पीड़ा भरे रास्तों पर चलती अपने नन्हे
को वह अपने अंग -संग महसूस करती होगी। कभी छोटी -छोटी सी शरारतें
करते हुए ,तो कभी जवान हुए पुत्र को अपना सहारा बने। 'नानक दुखिया
सब संसार' -धन्य है उस माँ का हृदय जिसने यह सब कुछ अपनी रूह
पर झेला तथा फिर कैसे यह सब लिखने का हौसला भी किया होगा। यह सच भी तो है कि दुःख बाँटने
से कम होता है। उसने तो अपने दुःख की साँझ पूरी दुनिया से पाई थी; ताकि वह अपनी जिन्दा
लाश के बोझ को उठाती जीने लायक हो जाए। अश्रु भीगे दिन कुछ आसान हो जाएँ।
मुझे लगा कि कुदरत भी आज उसके
संग मातम मना रही थी। अब बारिश बंद हो गई थी तथा ऊँचा उठा आसमाँ तरो-ताज़ा दिखाई दे
रहा था। लगता था कि वह भी रो कर थोड़ा उसके जैसे दुःख के बोझ से हल्का हो गया होगा।
तेज़ हवाएँ
निखरा आसमान
वर्षा के बाद।
-डॉ
हरदीप कौर सन्धु
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2-शशि
पाधा
1
बहुत सोचा
अब नहीं छेड़ूँगी
मन का तल
रहने दूँगी
वहाँ रखी निधियाँ
तेरी यादों की
बीते पलों का सुख
साँसों की खुश्बू
गीत -गुंजन
बरसों तक सहेजी
हमारी प्रीत
क्यों डरता है मन
कहीं सेंध न लगे।
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