ज्योत्स्ना प्रदीप
1
जीवन
अवसाद नहीं
उसकी छाया
हो
फिर कुछ
भी याद नहीं ।
2
पातों की बेबाकी
गिरती बूँदों को
लो ! मान
लिया साकी ।
3
भँवरें
बदनाम हुए
गुलशन में
आए
कुछ
किस्से आम हुए ।
4
मंजर शैतान हुआ
रात यशोदा- सी
चंदा छुप ,श्याम हुआ ।
5
मंज़र
कितनें प्यारे
गगन धरा
छूता
नभ को
निशिकर -तारे
6
गैया की
नादानी
बैठी
चौराहे
भोली- सी
मनमानी।
7
खोने
से सहमे हो
उतरेगी इक
दिन
काया जो
पहने हो ।
8
सब कुछ न
कभी खोता
भोर उसे प्यारी,
जो नींद
गहन सोता ।
9
चंदा
सौगात तभी,
कौन तके
उसको
होती जो
रात नहीं ।
10
जीवन क्षण
-भंगुर है
झरते फूलों से
सहमा कुछ
अंकुर है ।
11
सच का
अपराध यही
पथ है
कठिन बड़ा
जीवन की साध यही ।
12
ईश्वर को
पाना है
उसके अंश
सभी
उसमें मिल
जाना है ।
13
जीवन की
बात यही-
इसको चैन नहीं
साँसें
सौगात रहीं ।
14
बस समय
बदलता है
पूर्ण
विराम नहीं,
यह जीवन
चलता है ।
-0-
11 टिप्पणियां:
ज्योत्स्ना जी बहुत अच्छे माहिया।विशेष-
खोने से सहमे हो
उतरेगी इक दिन
काया जो पहने हो ।। बधाई।
SUndar mahiya :)
ज्योत्स्नाजी बहुत ख़ूबसूरत माहिया। बधाई।
दार्शनिक भावों से परिपूर्ण सुंदर माहिया ज्योत्स्ना जी | बधाई आपको |
शशि पाधा
सभी माहिया बहुत सुंदर हैं ,ज्योत्स्ना जी बधाई|
पुष्पा मेहरा
aap sabhi kee hridy se abhaaree hoon mujhe samay -samay par snehil -protsahan dene ke liye ...
सभी माहिया बेहतरीन!!
bahut sundar rachnaayen!
Purnima Rai ji , Amit Agarwal ji ..abhaar !
बहुत सुन्दर माहिया...हार्दिक बधाई...|
भाव गंभीर ,सुन्दर माहिया ...अनुपम सृजन हेतु बहुत बधाई ज्योत्स्ना जी !
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