1-मंजूषा ‘मन’
1
उसको अपना माना
उसने आँखों का
ये भाव न पहचाना।
2
तन माटी के पाया
मन क्यों पाहन है
ये समझ नहीं आया ।
3
मन में कोयल बोली
तेरी चाहत ने
भर दी मेरी झोली।
4
मिलने की सूरत थी
कोशिश करने की
कुछ और ज़रूरत थी।
5
बस याद तिहारी थी
तुमको चाहा था
ये भूल हमारी थी।
6
प्यारा ये सन्नाटा
इसने ही हमसे
मेरा हर दुख बाँटा।
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2-कुमुद बंसल
1
छोड़ो तुम
शर्माना
आओ पास अभी
चुनरी जो
रँगवाना।
2
दिल को ना भरमाना
दूरी ना मिटती
भूलो अब बहलाना
।
3
मैं मोहन तू राधा
तन –मन रँग डालूँ
अब मधुबन मेंआजा ।
4
झूठी यह सब माया
दलदल से बचना
ढल जाएगी काया ।
5
आना ,फिर से जाना
लहरों का जीवन-
सागर में मिल जाना ।
6
छलिया हो, छल जाते
अब न छलो मोहन
क्यों मुझको भरमाते ।
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8 टिप्पणियां:
मंजूषा जी, कुमुद जी बहुत अच्छे माहिया। बधाई।
मंजूषा जी और कुमुद जी ! माधुर्य लिए भावपूर्ण और सुंदर हाइकु के लिए बधाई स्वीकारें !
manjusha ji va susheela ji bahut sunder mahiya hain , badhai
pushpa mehra
Bahut achhe sabhi mahiya bhavpurn meri hardik shubhkamnaye...
manjusha ji va susheela ji bahut bhavpurn mahiya hain ... badhai
आप सभी कअ हार्दिक आभार हमारे प्रयास कओ पसन्द करने और हौसला बढ़ाने के लिए।
प्रेरणा देते रहिये।
भावपूर्ण माहिया कुमुद जी। बधाई स्वीकार करें।
बहुत मधुर ,मोहक माहिया ..बहुत बधाई कुमुद जी ,मंजूषा जी !
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