शनिवार, 12 दिसंबर 2015

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मंजूषा मन
1            
सूरज का ल जाना
फिर से आने की
उम्मीद जगा जाना।
2
फूलों के हार बने
मेरी खातिर तो
काँटे हर बार बने।
3
तारे बाराती हैं
चन्दा ब्याह करे
चंदनिया गाती है।
4
हम यूँ खो जाते हैं
उसकी बातों से
पागल हो जाते हैं।
5
दादी का किस्सा है
मेरे बचपन का
ये प्यारा हिस्सा है।
6
इक सोनचिरैया है
बेटी तो मेरे
जीवन की नैया है।
7
आँसू बन बहता है
मेरी आँखों में
सपना बन रहता है।
8
कलियाँ ये हँसती हैं
भँवरा जाल बुने
इस में ये फँसती हैं।
9
पत्ते झर जाते हैं
पतझर बीते तो
फिर से आ जाते हैं।
-0-

8 टिप्‍पणियां:

Krishna ने कहा…

बहुत सुन्दर माहिआ मंजूषा जी बहुत बधाई!

Kamlanikhurpa@gmail.com ने कहा…

सुन्दर माहिया

खासकर चंदनिया मन मोह गई
बधाई

Pushpa mehra ने कहा…

manjusha ji bahut sunder mahiya hain, badhai .
pushpa mehra.

Jyotsana pradeep ने कहा…

manjusha ji bahut sunder mahiya hain, badhai .

sushila ने कहा…

सुंदर माहिया मंजूषा जी । प्रकृति के भिन्न उपादानों के माध्यम से भावाभिव्यक्ति का सौंदर्य द्विगुणित हुआ । बधाई मंजूषा जी !

Dr.Purnima Rai ने कहा…

इक सोनचिरैया ....बेटी ....नैया....वाहहह

बधाई..।।मन ....जी...

Dr.Purnima Rai ने कहा…

इक सोनचिरैया ....बेटी ....नैया....वाहहह

बधाई..।।मन ....जी...

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

हम यूँ खो जाते हैं
उसकी बातों से
पागल हो जाते हैं।
बहुत मधुर से भाव कह दिए आपने इसमें...| सभी माहिया बहुत पसंद आया पर यह वाला कुछ अधिक ही...|
हार्दिक बधाई...|