रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
हे मन धीर धरो
कौन यहाँ बाँटे
खुद अपनी पीर हरो ।
2
मन की मन कह लेना
सुख-दुख साथी हैं
जो मिलता सह लेना।
3
आँसू बह जाएँगे
कितना भी रोकें
पीड़ा कह जाएँगे।
4
पर्वत चढ़ने वाले
ये कब गिनते हैं
पाँवों के जो छाले।
-0-
9 टिप्पणियां:
bahut bhaavpravan ,prerak maahiyaa aaapake !
hruday se badhaii ..naman bhaaii ji !!
संगर्ष करने की प्रेरणा देते माहिया । पर्वत चढ़ने वाले / कब गिनते हैं/ पावों के जो छाले ।सफलता का यही गुर है ।वाधायों की परवाह किये बिना आगे बढ़ने वाला ही शिखर तक पहुंचता है ।बधाई ।
Javab nahi aapka meri hardik shubhkamnayen...
सुन्दर माहिया।काम्बोज जी को प्णाम।
सुन्दर माहिया।काम्बोज जी को प्णाम।
काम्बोज जी नमन .सुन्दर भावपूर्ण माहिया रचे हैं .बधाई .
आदरणीय कम्बोज जी प्रणाम
सुंदर माहिया रचने के लिए हार्दिक बधाई
आदरणीय मुझे लगता है पहला माहिया थोडा सा गलत है यह ऐसे होना चाहिए
हे मनवा धीर धरो ..
अब मात्रा ठीक है ,कृपया अन्यथा ना लें
आदरणीय कम्बोज जी प्रणाम
सुंदर माहिया रचने के लिए हार्दिक बधाई
आदरणीय मुझे लगता है पहला माहिया थोडा सा गलत है यह ऐसे होना चाहिए
हे मनवा धीर धरो ..
अब मात्रा ठीक है ,कृपया अन्यथा ना लें
sadar naman bhaaii ji!
bahut bhaavpravan maahiyaa !
hruday se badhaii evam shubhkaamnayen aapko !
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