मंजूषा ‘मन’
सारी उमर
न माँगी थी
तुमसे
माँगे हमने
बस कुछ ही
पल
मन की
बातें
कहने की
खातिर
घर न द्वार
न ही कोई
तोहफा
दिल चाहिए
बस खुश
रहने
पर नाहक
तपन हमें
मिली
जलते रहे
जलन ही तो
मिली
कह जो पाते
घुट न मर
जाते
रत्ती भर
जो
शीतलता पा
जाते
उमर भर
फिर जी
पाते हम
टूट न जाते
हम।
12 टिप्पणियां:
वाह मंजूषा जी। बहुत खूब।
बहुत सुंदर चोका।
बहुत सुन्दर चोका मंजूषा जी.... बधाई!
kah na pane ka dukh hamesha salta rahta hai par ham kahi ruk jate hain apne sanskaron ke karan or khud men hi jalte rahte hain bahut achha choka likha aapne hardik badhai aapko...
शीतलता पा जाते
उमर भर
फिर जी पाते हम
टूट न जाते हम।
bahut khoob sunder abhivyakti
badhai
rachana
kya kahna mann ki abhiyakti prakat karna koi appse sikhe
शीतलता पा जाते
उमर भर
फिर जी पाते हम
टूट न जाते हम।
वाह मंजूषा जी। बहुत खूब।
बहुत सुन्दर चोका ... बधाई!
Congrates!!बहुत खूब!!
Congrates!!बहुत खूब!!
आप सभी का हार्दिक आभार इस प्रयास को पसन्द करने हेतु।
आभार
बहुत मर्मस्पर्शी चोका...बहुत बधाई...|
marmsparshii prastuti ...bahut badhaii !!
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