चुप्पी की आग
डॉ हरदीप कौर सन्धु
पल -पल मिज़ाज बदलता मौसम। कभी ज़ोर से बारिश होने लगती तो कभी तीखी धूप। इस
अनचाहे से मौसम में भी स्कूल -कॉलेज के विद्यार्थी सफ़ेद पहनावे में तीतर पंखी
बादलों के जैसे सड़कों पर उत्तर आए थे। औरत पर होते अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठाने
के लिए। सफ़ेद रिबन लगाए और लोग भी जुड़ते गए तथा काफ़िला बढ़ता गया। बड़े चौक में
पहुँचकर धुआँधार तकरीरों के उपरान्त हजूम
में शामिल सभी मर्दों को खड़ा कर औरत का सम्मान करने के लिए शपथ दिलाई गई।
गम्भीर- सी दिखती एक बीवी चुप्पी को ओढ़े पहली
पंक्ति में खड़ी सब कुछ सुन रही थी। मगर उसकी चुप्पी में अंगारे सुलग रहे थे। उसकी
बेचैनी बढ़ती जा रही थी। अचानक उसकी चुप्पी
रोष में बदल गई। स्टेज सेक्रेटरी को पीछे धकेलती वह भड़क गई, " यहाँ
खड़े हर मर्द से आज मैं पूछती हूँ क्या उसने कभी सोचा है कि वह औरत के बिना कितना
अधूरा है? कदे 'कल्ला बहि के सोची वे
असीं की नी कीता तेरे लई।' अपने आपको मार खुद को तेरे रंग
में रंग डाला। मगर तूने मुझे फिर भी शून्य ही माना। खुद को तुरुप का इक्का मानने वाले शायद तुझे नहीं पता कि यहाँ
अकेले तुरुप की कोई कीमत नहीं है। यह शून्य ही है ,जो तुझे लाखों -करोड़ बना देती
है। मगर फिर भी यहाँ हर गाली औरत के लिए तथा हर दुआ मर्द के हिस्से आई है।
चारों ओर
छाई श्मशान -सी चुप्पी और गहरी हो गई थी। भीतर तक हिला देने वाला हृदयबेधक सच को
नंगा करती हुई वह तो निचली जैसे उधड़ती चली जा रही थी।" मेरी भावनाओं तथा शौक को कुचलना तेरी आदत बन गई है। मुझे
मोहरा बनाकर अपना उल्लू सीधा कर हर हालत में मुझे ही गलत साबित करते आ रहे हो तुम।
'थोथा चना बाजे घना' केवल बातों से ही पहाड़ खड़े करते
हो। खुद की कमियों को ढकने के लिए कभी मुझे गुणहीन -बदचलन कहा तो कभी पैर की जूती।
मगर जब यह पैर की जूती तेरे सर पड़ेगी ,तब तुझे अक्ल आएगी। हर
पल मुझमें बुराई ढूँढने वाले, तुम तो उस मक्खी जैसे हो ,जो केवल जख़्म पर ही बैठना जानती है। बात -बात पर मुझे बेघर करने की धमकी
देते तो , मगर याद रखना मेरे बिन तुम्हारा यह घर खड़े रहने
लायक एक मकान भी नहीं रहेगा। "
अदब का पल्लू पकड़
उसने बोलना जारी रखा, " ओ भले लोगो ! मैंने तो तहज़ीब की रस्सी अभी
भी पकड़ी हुई है। तेरे इस अखूट घर की इज़्ज़त को अपने पल्लू में समेटे हुए हूँ मैं।
आठ पहर काम करके मैंने तुझसे माँगा ही क्या है दो वक्त की रोटी और थोड़ा- सा सन्मान। मगर तेरे कुसैले बोल तथा क्रूर नज़रें मेरी रूह को हर पल छलनी
कर रहीं हैं। मेरी चुप्पी को मेरी कमज़ोरी न समझ लेना। जवाब देना मुझे भी आता है।
"
उसकी आँखों
में अब जीत की चमक थी। उसमे दूर आसमान पर सतरंगी इंद्रधनुष को देखा। ऐसा लगा जैसे
अम्बर से उत्तर सात रंग उसके सफ़ेद रिबन तथा चूनर पर बिखर गए हों।
थमी बरखा
सातरंग झलके
इन्द्रधनु के।
डॉ हरदीप कौर सन्धु
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13 टिप्पणियां:
नारी की शक्ति, स्वाभिमान और मनोविज्ञान को चित्रित करता हुआ सुन्दर हाइबन.
वास्तव में नारी तो उमड़ते- घुमड़ते बादलों के बीच छिपी बिजली है | नारी सोई तो बुझी चिंगारी , जागी तो शोला,दहकी तो ज्वाला ......
नारी शक्ति को दर्शाता हाइबान बहुत सुंदर है , बहन संधु जी बधाई|
पुष्पा मेहरा
बहन संधू जी नारी के कष्टों की व्याख्या भी है और रोष भी है उस सबसे जूझने का, आपके हाईबन में|ज़ख्म पर मक्खी का बैठना सुन्दर उपमा दी है |हार्दिक बधाई |
चुप्पी के पीछे छिपी नारी मन में पुरुष के लिए उसकी सोच उसके रोष का बहुत सही वास्तविक चित्रण करता एक सशक्त हाइबन।
हरदीप जी बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति....हार्दिक बधाई।
हरदीप जी ने जिस तरीके से स्त्रिओं के दर्द को पीड़ा को हाइबन का रूप देकर प्रस्तुत किया दिल को छू गया है।बहुत अच्छा लगा। बहुत ठंडक पहुँची मन को। स्त्री आज 21 वीं सदी में आकर कुछ अपवाद को छोड़ कर वहीं की वहीं है। बल्कि अपनी अहमियत जताने के लिए अपने आप को दुगुनी चक्की में पीसती है । फिर भी बात वहीं की वहीं। पुरुष के मन का भाव कभी नही बदल सकता। हाइबन पेश करने का सामयिक समस्याओं को प्रस्तुत करने का सुंदर तरीका बढ़िया लगा। बढ़िया लगी उपमायें।
हर पल मुझमें बुराई ढूँढने वाले, तुम तो उस मक्खी जैसे हो ,जो केवल जख़्म पर ही बैठना जानती है। बात -बात पर मुझे बेघर करने की धमकी देते तो , मगर याद रखना मेरे बिन तुम्हारा यह घर खड़े रहने लायक एक मकान भी नहीं रहेगा। "
नारी की शक्ति को चित्रित करता हुआ सुन्दर हाइबन... सुंदर उपमायें
हरदीप जी बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति....हार्दिक बधाई।
दिल को बींधता हुआ हर शब्द ! नारी की चुप्पी और रोष का अत्यंत सजीव चित्रण ! 'ज़ख़्म पर बैठने वाली मक्खी...' -लाजवाब !
कुल मिलाकर बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति !
हार्दिक बधाई हरदीप जी !
~सादर
अनिता ललित
हरदीप जी...जैसे कलेजे में कोई खंज़र उतर गया हो, पर पीड़ा की जगह एक अनोखे सकून का अहसास हुआ हो, कुछ ऐसा ही है आपका यह हाइबन...| एक-एक शब्द दिल को छूता हुआ...| बहुत सशक्त-सार्थक रचना...| हार्दिक बधाई...|
लाज़वाब
हरदीप जी शब्दों का जादू ,भावों का संगम और व्यथा की आत्मा का संकल्प अद्वितीय।
बधाई!!
हरदीप जी शब्दों का जादू ,भावों का संगम और व्यथा की आत्मा का संकल्प अद्वितीय।
बधाई!!
मन को गहरे तक छू लेता हाइबन हरदीप जी। हार्दिक बधाई
बेखुदी में फूट पड़ा सोता जैसे यकायक भिगो जाए ऐसे ही मन को भिगो गया आपका हाइबन ..बहुत बहुत बधाई आपको !
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