1-मंजूषा ‘मन’
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आँखों भीतर
एक ही सपना था
वो भी न अपना था
टूटा पल में
उस सपने संग
जीना या मरना
था .
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2-अनिता मंडा
सिन्दूर, बिंदी
चूड़ी और मेंहंदी,
लाल चुनरी
किये सब शृंगार
चौक सजाओ
मंगल गीत गाओ
वधू तुलसी
वर हैं शालिग्राम
ब्याह कराओ
देने शुभ आशीष
देव हैं उठे
वर-वधू अनूठे
लें फेरे सात
एकादशी पावन
लगे मनभावन।
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6 टिप्पणियां:
sedoka aur tanka dono hi sunder hain, manjusha ji va anita ji badhai.
pushpa mehra
sundar rachnayen...hardik badhai...
मञ्जूषा जी बहुत सुंदर सेदोका, बधाई।
पुष्पा जी , भावना जी आभारी हूँ आपकी आशीष मेरी रचना को मिली।
manjusha ji va anita ji ... sedoka aur tanka dono hi sunder hain ..haardik badhai
बहुत सुन्दर रचनाएँ...आप दोनों को हार्दिक बधाई...|
सुन्दर प्रस्तुति ....हार्दिक बधाई !
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